क्या दलित राजनीति करने वाली मायावती की पार्टी के इकलौते विधायक उमाशंकर सिंह का पत्ता भी साफ हो सकता है ? ऐसा क्या हुआ कि उमाशंकर सिंह के साथ जो उनके राजनीतिक करियर पर संकट के बादल मंडराने लगे हैं ?
उमाशंकर सिंह बहुजन समाज पार्टी के इकलौते विधायक हैं । उनकी अहमियत का अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि आकाश आनंद को पार्टी से निकालने के बाद पार्टी सुप्रीमो मायावती उमाशंकर सिंह और उनके परिवार से मिलने उनके घर गईं थीं । परन्तु वहीं उमाशंकर सिंह अब चौतरफा मुसीबतों में घिरते दिख रहे हैं ।
विजिलेंस विभाग ने शुरू की जांच
एक तो वह लंबे समय से बीमार चल रहे हैं । विधानसभा के सेशन में भी वो बीमारी की वजह से शामिल नहीं हो पाए थे । उपर से अब खबर आ रही है कि उन पर खुफिया विभाग की जांच शुरू हो गई है ।
सूत्रों की मानें तो विजिलेंस की वाराणसी यूनिट ने सभी निबंधन कार्यालय से BSP विधायक उमा शंकर सिंह की संपत्ति का ब्यौरा मांगा है । उमाशंकर सिंह के साथ-साथ पत्नी, बेटा और बेटी के नाम पर खरीदी संपति की जानकारी भी मांगी गई है । उमाशंकर सिंह के परिवार की कृषि भूमि का खतियान उनके बैंक खाते, निवेश, या अन्य वित्तीय गतिविधियों की भी जांच की जा सकती है।
मायावती के लिए भी माना जा रहा बड़ा झटका
उमाशंकर सिंह की संपत्ति की जांच में कुछ भी गड़बड़ी पाई गई तो बड़ा एक्शन हो सकता है । अगर नौबत उनकी विधानसभा सदस्यता जाने की आती है तो यह मायावती के लिए बड़ा झटका होगा । तब विधानसभा में बसपा की तरफ आवाज उठाने वाला कोई नहीं रहेगा । तो क्या ऐसे में दलितों की एकमात्र आवाज़ चंद्रशेखर रावण बचेंगे ?
ऐसी स्थिति आने पर नगीना से जीतकर आने वाले चंद्रशेखर आजाद दलितों के बीच घुसपैठ कर सकते हैं ।
भीम आर्मी के मुखिया चंद्रशेखर अगर उमाशंकर सिंह के लिए सड़क पर संघर्ष का रास्ता अख़्तियार करते हैं और प्रेशर पॉलिटिक्स में कामयाब हो जाते हैं तो वो दलितों के बीच संकटमोचक की छवि मज़बूत कर ले जाएँगे । मायावती खुद घर से बहुत कम बाहर निकलती है ।
उधर हाल के दिनों में दलितों के घर-घर जाकर उनकी समस्याओं को सुनने वाली चंद्रशेखर की रणनीति कारगर रही है । कई बार वो अपने वोटर्स के लिए अधिकारियों से पंगे लेने में भी नहीं हिचकते हैं । जाहिर है इसका सीधा असर लोगों पर पड़ता है ।
दरअसल दलितों के अधिकार की लड़ाई मायावती अपने बंगले से बैठकर लड़ रही हैं जबकि चंद्रशेखर सड़कों पर हुंकार भर रहे हैं । ऐसे में दलित वोटरों खासकर युवाओं का झुकाव चंद्रशेखर की तरफ बढ़ रहा है । चंद्रशेखर की रणनीति भी यही है ।