सनातन धर्म में गाय को मां स्वरूप पूजा जाता है। हिंदू धर्म ग्रंथों के अनुसार गाय में 33 करोड़ देवी-देवताओं का वास होता है। शास्त्रों के अनुसार, ब्रह्मा जी ने जब सृष्टि की रचना की थी तो सबसे पहले गाय को ही पृथ्वी पर भेजा था। धार्मिक मान्यता है कि गौ पूजा से मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है। घर की समृद्धि के लिए भी घर में गाय का होना बहुत शुभ माना जाता है। गाय की पूजा करने से सभी देवताओं का पूजन अपने आप हो जाता है। श्रीमद्भागवत के अनुसार, जब देवता और असुरों ने समुद्र मंथन किया तो उसमें कामधेनु निकली। पवित्र होने की वजह से इसे ऋषियों ने अपने पास रख लिया। माना जाता है कि कामधेनु से ही अन्य गायों की उत्पत्ति हुई।
गाय का गोबर और गोमूत्र को क्यों पवित्र कहा गया है?
गाय का गोबर और गौमूत्र सर्वाधिक पवित्र माना जाता है। शास्त्रों के अनुसार गाय के मुख वाले भाग को अशुद्ध और पीछे वाले भाग को शुद्ध माना जाता है। इसके पीछे धार्मिक कारण यह है कि गाय के गोबर में लक्ष्मी का वास माना जाता है और गोमूत्र में गांगा मैया का वास। किसी भी धार्मिक कार्यों में गाय के गोबर से स्थान को पवित्र किया जाता है। गाय के गोबर से बने उपले से हवन कुण्ड की अग्नि जलाई जाती है। माना जाता है कि गाय के गोबर से हवन करने पर वातावरण और घर के आस-पास मौजूद कीड़े भाग जाते हैं और वायु शुद्ध होती है। आपको बता दें कि पुराने समय में साधु संत गोबर और मिट्टी को शरीर में लेपक स्नान करते थे, जिससे शरीर में किसी प्रकार के त्वचा संबंधी रोग और बीमारी नहीं होती थी।
वहीं गांव के घरों में गोबर से फर्श को लिपने और गो-मूत्र छिड़कने की परंपरा है। गोमूत्र को पवित्र माना जाता है क्योंकि उसमें कीटनाशक के गुण होते हैं। इसलिए औषधि और चिकित्सा में गोमूत्र को पीने की सलाह दी जाती है। गौमूत्र को जीवन का अमृत बताया गया है। इसीलिए इसे पंचगव्य में भी शामिल किया गया है। सनातन धर्म के धार्मिक अनुष्ठानों में पंचगव्य का अपना खास महत्व है। इसमें गाय से मिलने वाली मसलन, दूध, दही, घी-मक्खन, गौमूत्र और गोबर जैसी पांच चीज़ें शामिल हैं। मान्यताओं के अलावा वैज्ञानिकों ने भी माना है कि गौमूत्र में बहुत से उपयोगी तत्व पाए जाते हैं, जिनसे अनेक बीमारियों का उपचार संभव है।
गाय के महत्व को लेकर हमारे शास्त्रों में कहा गया है
यया सर्वमिदं व्याप्तं जगत् स्थावरजङ्गमम्।
तां धेनुं शिरसा वन्दे भूतभव्यस्य मातरम्॥
अर्थात् जिसने समस्त चराचर जगत् को व्याप्त कर रखा है, उस भूत और भविष्य की जननी गौ माता को मैं मस्तक झुका कर प्रणाम करता हूं॥
सुरूपा बहुरूपाश्च विश्वरूपाश्च मातरः।
गावो मामुपतिष्ठन्तामिति नित्यं प्रकीर्तयेत्॥
अर्थात् हर रोज हमें यह प्रार्थना करनी चाहिये कि सुन्दर तथा अनेक प्रकार के रूप-रंग वाली विश्वरूपिणी गोमाताएं सदा मेरे निकट आयें ।