44 साल पहले हुए दिहुली दलित नरसंहार मामले में आखिरकार न्यायालय ने अपना फैसला सुना ही दिया। सभी दोषियों को फांसी की सजा सुनाई गई है। बता दें कि फिरोजाबाद जिले के थाना जसराना क्षेत्र के दिहुली गांव में 18 नवंबर 1981 की शाम एक भयावह नरसंहार हुआ था। हथियारबंद बदमाशों ने दलित बस्ती पर हमला बोलते हुए तीन घंटे तक गोलियों की बौछार की थी, जिसमें 23 लोगों की मौके पर ही मौत हो गई थी। एक घायल ने बाद में अस्पताल में दम तोड़ दिया था। इस निर्मम हत्याकांड ने पूरे क्षेत्र को हिला कर रख दिया था।
मामले की कानूनी प्रक्रिया
इस जघन्य हत्याकांड की प्राथमिकी दिहुली निवासी लायक सिंह ने 19 नवंबर 1981 को जसराना थाने में दर्ज कराई थी। इसमें राधेश्याम उर्फ राधे और संतोष चौहान उर्फ संतोषा को नामजद किया गया था। मामले की जांच के बाद पुलिस ने कई अन्य आरोपियों को भी शामिल किया। मामले की विवेचना पूरी होने के बाद पुलिस ने आरोप पत्र न्यायालय में प्रस्तुत किया। प्रारंभ में जिला न्यायालय में सुनवाई हुई, लेकिन बाद में इसे प्रयागराज स्थानांतरित कर दिया गया। वहां से फिर मैनपुरी स्पेशल जज डकैती न्यायालय को सौंपा गया। इस न्यायालय में पिछले 15 वर्षों से सुनवाई चल रही थी।
दोषियों को फांसी की सजा
11 मार्च 2025 को डकैती न्यायालय की न्यायाधीश इंदिरा सिंह ने तीन दोषियों—कप्तान सिंह, रामसेवक और रामपाल—को सामूहिक हत्याकांड में दोषी ठहराया। इसके बाद 18 मार्च को सुनवाई के दौरान तीनों को फांसी की सजा सुनाई गई। साथ ही, प्रत्येक दोषी पर 50-50 हजार रुपये का जुर्माना भी लगाया गया। सजा सुनाए जाने के दौरान तीनों दोषी रोते हुए अपनी सफाई देते रहे, लेकिन न्यायालय ने इस मामले को गंभीर मानते हुए कठोर दंड दिया।