सनातन संस्कृति और नाटक की भारत से बाहर विदेश में गूंज

Authored By: News Corridors Desk | 21 Oct 2025, 01:04 PM
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‘विक्रमोर्वशीयम्’ और ‘मेरी मुनिया’ का सफल नाट्य मंचन: भारतीय और बाली (इंडोनेशिया) संस्कृति के संगम का अद्भुत दृश्य

ग्लोबल संस्कृत फोरम और देनपासार (बाली, इंडोनेशिया) –


सुग्रीव राज्य हिंदू विश्वविद्यालय (I.G.B. Sugriwa State Hindu University, Denpasar, Bali, Indonesia), Collage सोसाइटी तथा ‘ययासन धर्म स्थापना आश्रम’ (Yayasan Dharma Ethapna Ashram, Denpasar, Bali) के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित सांस्कृतिक समारोह में दो प्रभावशाली नाटकों — ‘विक्रमोर्वशीयम्’ और ‘मेरी मुनिया’ का सफल मंचन भारत से बाहर विदेश भूमि पर अंतराराष्ट्रीय स्तर पर मंचन किया गया। यह आयोजन भारतीय नाट्य परंपरा और बाली, इंडोनेशिया की सांस्कृतिक संवेदना का सुंदर संगम सिद्ध हुआ।

नाटक ‘मेरी मुनिया’ का लेखन और संगीत प्रसिद्ध नाटककार श्री अनिमेष खरे दास द्वारा किया गया, जबकि डिज़ाइन और निर्देशन की जिम्मेदारी डॉ. विधु खरे दास जी  ने संभाली। प्रोफेसर विधु खरे दास जी NSD की बहुत ही प्रसिद्ध रंगकर्मी हैं। और लगभग तीस वर्ष से नाट्य कर्म एवं रंगमंच कर रही हैं। इस प्रस्तुति में मुख्य भूमिका में श्री प्रवीन कुमार पांडेय ने अपने दशकों अनुभव से अपने सशक्त अभिनय से दर्शकों का मन मोह लिया।


उपरोक्त इन दोनों नाटकों में नाट्य प्रस्तुति के सहायक निर्देशक के रूप में डॉ. राघवेन्द्र मिश्र (JNU) का योगदान बहुत ही उल्लेखनीय रहा है, जिन्होंने प्रस्तुति को कलात्मक गहराई, भाषात्मक दृष्टिकोण और नई सांस्कृतिक दृष्टि प्रदान की।

इस अवसर पर प्रमुख अतिथि के रूप में प्रो. रजनीश कुमार शुक्ल जी(पूर्व कुलपति, वर्धा, महाराष्ट्र), तथा LBS के कुलपति  प्रो. मुरली पाठक जी, डाॅ. तिवारी (IAS, भारत सरकार), तथा डाॅ. राजेश मिश्र  (महासचिव , ग्लोबल संस्कृत फोरम) उपस्थित रहे।


कार्यक्रम की अध्यक्षता डाॅ. आचार्य जी (ययासन धर्म स्थापना आश्रम, देनपासार बाली, इंडोनेशिया) ने की।

‘विक्रमोर्वशीयम्’ — महाकवि कालिदास द्वारा रचित संस्कृत नाटक की प्रस्तुति ने भारतीय नाट्यशास्त्र की शास्त्रीय गरिमा और साहित्य को जीवंत किया, जबकि ‘मेरी मुनिया’ ने आधुनिक जीवन की संवेदनाओं, मानवीय रिश्तों और समाज की जटिलताओं को करुणा और यथार्थ के साथ प्रस्तुत किया। दोनों नाटकों के माध्यम से भारतीय और बाली (इंडोनेशिया) संस्कृति के गहरे आध्यात्मिक और कलात्मक संबंधों का सजीव प्रदर्शन हुआ।

कार्यक्रम के अंत में कुलपति प्रो. रजनीश कुमार शुक्ला जी ने कलाकारों को सम्मानित करते हुए कहा कि “भारत और बाली(इंडोनेशिया) की साझा सांस्कृतिक विरासत मानवता को जोड़ने का अद्भुत सूत्र है। ऐसे नाट्य मंचन दोनों देशों की आत्मा को एक दूसरे से जोड़ते हैं।”

इस अवसर पर भारत, इंडोनेशिया और विभिन्न देशों से आए हुए दर्शकों और अतिथियों ने प्रस्तुतियों/ नाटकों की भूरि-भूरि प्रशंसा की और कलाकारों को खड़े होकर अभिवादन एवं सम्मान किया।

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