सुप्रीम कोर्ट ने वक्फ कानून की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई के दूसरे दिन केंद्र सरकार को जवाब दाखिल करने के लिए सात दिन का समय दिया है। इस मामले में देशभर से कई संगठनों और नेताओं द्वारा याचिकाएं दाखिल की गई हैं। अदालत ने यह भी स्पष्ट किया है कि इतने बड़े संख्या में याचिकाओं पर सुनवाई संभव नहीं है, इसलिए फिलहाल केवल पांच याचिकाओं पर ही विचार किया जाएगा।
केंद्र सरकार को राहत, लेकिन साथ ही शर्तें भी
मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना, जस्टिस संजय कुमार और जस्टिस केवी विश्वनाथन की बेंच ने यह स्पष्ट किया कि कुल 10 याचिकाएं दाखिल की गई हैं, लेकिन फिलहाल केवल पांच पर ही सुनवाई की जाएगी। अदालत ने कहा कि इतने बड़े पैमाने पर याचिकाओं की सुनवाई करना व्यावहारिक नहीं है।
केंद्र सरकार की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने अदालत से जवाब दाखिल करने के लिए एक सप्ताह का समय मांगा। अदालत ने यह समय देते हुए केंद्र सरकार से यह भी कहा कि तब तक वक्फ परिषद या किसी वक्फ बोर्ड में कोई नई नियुक्ति नहीं की जाएगी।
इसके अलावा, सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र को यह आश्वासन भी रिकॉर्ड पर लिया कि अगली सुनवाई तक ‘वक्फ बाय डीड’ और ‘वक्फ बाय यूजर’ को गैर-अधिसूचित नहीं किया जाएगा।
1995 के अधिनियम से पूर्व की संपत्तियां नहीं छेड़ी जाएंगी
सुनवाई के दौरान प्रधान न्यायाधीश संजीव खन्ना ने महत्वपूर्ण टिप्पणी करते हुए कहा कि यदि किसी संपत्ति का रजिस्ट्रेशन 1995 के वक्फ अधिनियम के तहत हुआ है, तो उन संपत्तियों को फिलहाल नहीं छेड़ा जाएगा। इसका उद्देश्य है वर्तमान कानूनी स्थिति को यथास्थिति में बनाए रखना।
5 मई को अगली सुनवाई
सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि अब अगली सुनवाई 5 मई को होगी। उस दिन सरकार द्वारा दाखिल किए गए जवाबों के बाद याचिकाकर्ताओं को भी अपनी प्रतिक्रिया देने के लिए 5 दिन का समय मिलेगा। इसके बाद, अदालत मामले में अंतरिम आदेश जारी करने पर विचार कर सकती है।
कौन-कौन हैं याचिकाकर्ता?
इस मामले में याचिकाएं दायर करने वालों में प्रमुख नाम शामिल हैं:
AIMIM प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी
आप विधायक अमानतुल्ला खान
आरजेडी नेता मनोज कुमार झा
एसोसिएशन फॉर द प्रोटेक्शन ऑफ सिविल राइट्स
अंजुम कादरी, तैय्यब खान सलमानी, मोहम्मद शफी और अन्य
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वक्फ अधिनियम को लेकर कई बार यह तर्क दिया गया है कि इसकी वजह से गैर-वक्फ संपत्तियों को भी वक्फ संपत्ति घोषित कर दिया जाता है, जिससे निजी संपत्ति अधिकारों का उल्लंघन होता है। अब सुप्रीम कोर्ट में इस कानून की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी गई है।