मालेगांव ब्लास्ट केस में अदालत से बरी किए जाने के बाद रो पड़ी साध्वी प्रज्ञा,कहा-ये भगवा की जीत

Authored By: News Corridors Desk | 31 Jul 2025, 02:28 PM
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मालेगांव धमाके के मामले में बाइज्जत बरी होने के बाद साध्वी प्रज्ञा ठाकुर ने कहा कि, ये केस मैंने नहीं जीता, ये भगवा की जीत हुई है । सुनवाई के दौरान साध्‍वी प्रज्ञा ने अदालत में रोते हुए कहा कि, उन्‍हें 13 दिन तक टॉर्चर किया गया । 17 साल तक वो संघर्ष करती रहीं । इस दौरान काफी अपमान सहना पड़ा । एक साध्‍वी जो संन्यासी जीवन जी रही थी, उसे आतंकवादी बना दिया गया ।  

“भगवा की जीत, हिंदुत्व की विजय”

साध्वी प्रज्ञा ठाकुर ने कोर्ट में कहा,“भगवा को बदनाम किया गया, लेकिन आप के फैसले से मैं खुश हूं क्योंकि आपने मेरे दुख को समझा। ये केस मैंने नहीं, भगवा ने जीता है। यह हिंदुत्व की जीत है और मेरा जीवन अब सार्थक हो गया है।” उन्होंने आगे कहा, “जिन लोगों ने भगवा आतंकवाद या हिंदू आतंकवाद कहा, उन्हें दंड जरूर मिलेगा।”

पूर्व बीजेपी सांसद साध्वी प्रज्ञा ठाकुर ने कहा, “मैं आज जिंदा हूं क्योंकि मैं एक संन्यासी हूं। भगवा को बदनाम करने की साजिश रची गई थी, लेकिन आज सच की जीत हुई है। जो भी दोषी हैं, उन्हें ईश्वर सजा देगा।”

कोर्ट ने साध्वी प्रज्ञा को बरी करते हुए क्या कहा?

एनआईए की स्पेशल कोर्ट ने साफ तौर पर कहा कि जांच एजेंसियां यह साबित नहीं कर पाईं कि विस्फोट के लिए इस्तेमाल की गई जिस बाइक का जिक्र हुआ, वह वास्तव में साध्वी प्रज्ञा की थी। इसके अलावा फरीदाबाद, भोपाल आदि जगहों पर किसी साजिश की योजना बनने या बैठकें होने का कोई ठोस सबूत भी अदालत में पेश नहीं किया जा सका।

क्या है मालेगांव धमाका मामला ?

29 सितंबर 2008 को महाराष्ट्र के नासिक जिले के मालेगांव में एक जबरदस्त धमाका हुआ था । रमजान के महीने में मुस्लिम बहुल इलाके में हुए इस धमाके में 6 लोगों की मौत हो गई थी और 101 लोग घायल हुए थे। महाराष्ट्र एटीएस ने दावा किया कि यह धमाका एक मोटरसाइकिल में लगे IED से किया गया था।

महाराष्ट्र एटीएस ने अपनी जांच के बाद साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर को 23 अक्टूबर 2008 को गिरफ्तार किया । जांच एजेंसी का कहना था कि धमाके में इस्तेमाल की गई मोटरसाइकिल उन्हीं के नाम रजिस्टर्ड थी। इसके अलावा लेफ्टिनेंट कर्नल प्रसाद पुरोहित, समीर कुलकर्णी, रमेश उपाध्याय समेत कुल 11 लोगों को आरोपी बनाया गया। इन पर मकोका (MCOCA) और यूएपीए जैसे सख्त कानूनों के तहत केस दर्ज किया गया।

इस केस में पहली बार किसी कथित हिंदू संगठन का नाम सामने आया और "भगवा आतंकवाद" जैसे शब्द राजनीतिक बहसों में आने लगे । उस वक्त केंद्र में कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार थी।

2011 में एनआईए को सौंपी गई जांच 

2011 में महाराष्ट्र सरकार की सिफारिश पर इस केस की जांच एनआईए को सौंप दी गई। एनआईए ने दोबारा जांच शुरू की और पाया कि कई सबूतों में खामियां हैं। 2016 में एनआईए ने सप्लिमेंट्री चार्जशीट दाखिल की और मकोका की धाराएं हटा दीं। एजेंसी ने कहा कि मकोका जल्दबाज़ी में लगाया गया था और सबूतों की जांच में कई कमियां मिली हैं।

पूरे मुकदमे के दौरान अभियोजन पक्ष ने कुल 323 गवाह पेश किए, जिनमें से 34 ने अपने पहले दिए गए बयान बदल दिए। 2016 में एनआईए ने अदालत में कहा था कि प्रज्ञा सिंह ठाकुर और अन्य आरोपियों के खिलाफ सबूत काफी नहीं हैं, और उन्हें आरोपमुक्त करने की सिफारिश की थी । अब करीब 17 साल बाद अदालत ने इस मामले में अंतिम फैसला देते हुए सभी आरोपियों को बरी कर दिया।