कुछ लोग प्रेत, प्रेतात्मा या फिर डायन नाम पर भरोसा नहीं करते, लेकिन वहीं एक ऐसी भी जगह है जहां लोग डायन की पूजा करते हैं। जहां एक तरफ लोग इसको बुरी शक्ति मानते हैं। वहीं दूसरी तरफ झिंका गांव के लोगों की आस्था ऐसी है कि ये डायन (परेतिन माता) को माता मानते हैं और उसकी पूजा करते हैं। यहां एक छोटा सा मंदिर भी है, जिसे परेतिन दाई मंदिर के नाम से जाना जाता है। मान्यता है कि यहां स्थित परेतिन दाई सूनी गोद भर देती। चैत्र नवरात्रि में यहां विशेष अनुष्ठान की शुरुआत हो चुकी है। आइए जानते हैं इस मंदिर की कहानी...
मंदिर के पास से गुजरने पर करना होता है दान

परेतिन दाई मंदिर बालोद जिले के सिकोसा से अर्जुन्दा जाने वाले रास्ते पर झिंका गांव में स्थित है। माना जाता है कि इस मंदिर की डायन माता अच्छों को अच्छा करती है। लेकिन है तो डायन ही ना इसलिए अगर कोई माता का तिरस्कार कर उस राह से गुजर जाए तो उसके साथ अनहोनी भी कर देती है। दशकों से इस मंदिर की मान्यता है कि इस रास्ते से कोई भी मालवाहक वाहन या लोग गुजरते हैं और किसी तरह का समान लेकर जाते हैं तो उसका कुछ हिस्सा मंदिर के पास छोड़ना पड़ता है। झींका गांव में बहुत से ठेठवार (यादव) हैं, जो रोज दूध का व्यापार करते हैं। वो दूध बेचने आसपास के इलाकों में जाते हैं। उन्हें यहां दूध चढ़ाना ही पड़ता है। अगर दूध नहीं चढ़ाया तो दूध फट जाता है, ऐसा कई बार हो चुका है। नारायण सोनकर ने बताया कि वो सब्जी व्यापारी हैं। वो जब भी यहां से गुजरते हैं सब्जियां माता को अर्पित कर गुजरते हैं इससे मां का आशीर्वाद बना रहता है। दशकों से इस मंदिर की मान्यता रही है कि इस रास्ते से कोई भी मालवाहक वाहन या लोग गुजरते हैं और किसी तरह का समान लेकर जाते हैं तो उसका कुछ हिस्सा मंदिर के पास छोड़ना पड़ता है। वो चाहे फिर खाने-पीने की चीज हो या बेचने वाली चीज या फिर घर बनाने के लिए उपयोग में लाए जाने वाले सामान। आप वाहन में जो भी कुछ सामान ले जा रहे होते हैं उसमें से कुछ हिस्सा यहां चढ़ाना जरूरी है। ऐसा लोगों का मानना है कि कोई व्यक्ति अगर ऐसा नहीं करता है तो उसके साथ कुछ न कुछ अनहोनी होती है।
नवरात्र में नव दिन होती विशेष पूजा
चैत्र और शारदीय नवरात्रि में रेतिन माता के दरबार में विशेष आयोजन किए जाते हैं। जहां पर ज्योति कलश की स्थापना की जाती है और नवरात्रि के 9 दिन बड़ी संख्या में भक्तों का तांता लगा रहता है। सैकड़ों वर्षों से चली आ रही परंपरा के अनुसार 100 ज्योति कलश यहां पर प्रज्वलित किए गए हैं।