हिंदू-मुस्लिम मुद्दे पर डायरेक्टर महेश भट्ट ने किया ऐसा रिएक्ट, होने लगे ट्रोल

Authored By: News Corridors Desk | 28 Apr 2025, 01:05 PM
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हाल ही में जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया है। हमले में आतंकियों ने धर्म पूछकर निर्दोष लोगों को निशाना बनाया, जिससे देशभर में गुस्सा फूट पड़ा है। इसी माहौल के बीच फिल्म निर्माता महेश भट्ट ने भी अपनी भावनाएं साझा करते हुए अपने बचपन का एक मार्मिक किस्सा सुनाया है।

पहलगाम हमले से देशभर में गुस्सा

पहलगाम में हुए हमले के बाद नागरिकों में भारी आक्रोश देखा जा रहा है। लोग सड़कों पर उतरकर सरकार से पाकिस्तान को कड़ा जवाब देने की मांग कर रहे हैं। इस हमले ने हिंदू-मुस्लिम के बीच तनाव को भी हवा दे दी है, जो सोशल मीडिया और राजनीतिक बयानों में भी साफ दिखाई दे रहा है।

महेश भट्ट ने सुनाया अपना बचपन का अनुभव

महेश भट्ट ने बीबीसी को दिए गए एक इंटरव्यू में अपने बचपन के दिनों को याद करते हुए बताया कि किस तरह उनकी परवरिश एक मिश्रित धार्मिक माहौल में हुई थी। उन्होंने बताया कि उनकी मां मुस्लिम थीं और पिता हिंदू नागर ब्राह्मण समुदाय से थे।

महेश भट्ट ने कहा,

"हमारी वालदा जो थीं, मां मेरी वो सिय मुसलमान थीं, और मेरे पिता नागर ब्राह्मण। मां बचपन में जब नहलाती थी और स्कूल भेजती थी तो कहती थीं, 'बेटा तू नागर ब्राह्मण का बच्चा है। भार्गव गोत्र है और अश्विन शाखा है। अगर डर लगे तो या अली मदद बोल दिया कर।'"

महेश भट्ट ने आगे कहा कि उनका बचपन हिंदुस्तानी तहजीब का प्रतीक था, जहां धर्म के नाम पर कोई भेदभाव नहीं था। उन्होंने दुख जताया कि आज के दौर में वही तहजीब घाव बन गई है, जिसे लोग अपने भीतर चुभन की तरह महसूस करते हैं।

सोशल मीडिया पर वायरल हुआ महेश भट्ट का बयान

महेश भट्ट का यह भावुक बयान सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो गया है। कई लोग उनकी संवेदनशीलता और सच बोलने की हिम्मत की तारीफ कर रहे हैं। वहीं कुछ लोग महेश भट्ट को ट्रोल भी कर रहे हैं।

महेश भट्ट का फिल्मी करियर

महेश भट्ट भारतीय सिनेमा के उन चुनिंदा निर्देशकों में से हैं, जिन्होंने सामाजिक और मानवीय मुद्दों को बारीकी से अपनी फिल्मों में उकेरा है। उनकी कुछ मशहूर फिल्मों में शामिल हैं:

अर्थ (1982)

सारांश (1984)

नाम (1986)

लहू के दो रंग (1979)

डैडी (1989)

आशिकी (1990)

दिल है कि मानता नहीं (1991)

महेश भट्ट की फिल्मों में सामाजिक यथार्थ और मानवीय संवेदनाओं की झलक साफ देखने को मिलती है।