समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेता आज़म खान ने एक बार फिर पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव पर तंज कसा है। यह बयान ऐसे समय आया है जब 8 अक्टूबर को अखिलेश यादव, रामपुर में आज़म खान से मुलाक़ात करने जा रहे हैं। यह पहली बार होगा जब अखिलेश, जेल से छूटने के बाद आज़म से आमने-सामने मिलेंगे।
जेल के बाद भी ताने क्यों?
आज़म खान जब से जेल से बाहर आए हैं, उन्होंने अखिलेश यादव पर एक के बाद एक कई बार तंज कसे हैं। हर बार जब कोई पत्रकार अखिलेश से जुड़ा सवाल पूछता है, आज़म जवाब में कोई चुभती बात कह जाते हैं। उन्होंने यह भी जताया है कि पार्टी में उनकी अनदेखी हुई है, और उनकी अहमियत को नजरअंदाज किया गया है।
पहला तंज: "मैं छोटा आदमी हूं, मेरे कमरों में धूप नहीं आती", आज़म खान ने अखिलेश पर पहला बड़ा तंज मारते हुए कहा: "मैं गली में रहता हूं, मेरे कमरों में धूप नहीं आती, हवा नहीं आती, बारिश में घर में पानी भर जाता है। अगर बड़े लोग मेरे घर आएंगे तो मेरी इज़्ज़त बढ़ेगी।"
उन्होंने कहा कि उन्होंने कभी कोठी-बंगला नहीं मांगा, सिर्फ बच्चों के लिए कलम मांगी थी। "मैं उंगली रखता जाता था, मुलायम साइन करते जाते थे", अपने पुराने नेता मुलायम सिंह यादव को याद करते हुए आज़म ने कहा: "मैं उंगली रखता जाता था और मुलायम सिंह साइन करते जाते थे।"
यह बयान सीधे तौर पर अखिलेश की नेतृत्व शैली पर सवाल उठाता है। आज़म ने यह भी साफ़ किया कि वो हमेशा मुलायम सिंह की तरह नेतृत्व चाहते थे, जिसमें भरोसा और सम्मान होता था।
क्या अखिलेश को है आज़म की ज़रूरत?
भले ही आज़म ताने कस रहे हैं, लेकिन यह भी सच है कि अखिलेश यादव को 2027 की राजनीति के लिए आज़म की ज़रूरत है। आज़म खान का असर पश्चिमी उत्तर प्रदेश में गहरा है:
यूपी की 143 सीटों पर मुस्लिम वोटर प्रभावशाली हैं, आज़म का सीधा असर 100 से ज्यादा सीटों पर है, पश्चिमी यूपी की 30+ सीटों को जिताने की क्षमता, रामपुर जैसी सीट पर उनके बिना जीतना मुश्किल, PDA फॉर्मूले में वे मुस्लिम चेहरे के तौर पर फिट बैठते हैं, अंबेडकरवादी वोट को लुभाने में भी वो मदद कर सकते हैं, चंद्रशेखर आज़ाद को नगीना सीट जिताने में आज़म की भूमिका ने यह भी दिखाया कि वो दलित-मुस्लिम समीकरण बनाने में सक्षम हैं।
क्या आज़म मानेंगे?
अब सवाल ये है कि क्या 8 अक्टूबर को अखिलेश-आज़म की मुलाक़ात के बाद सारे गिले-शिकवे दूर हो जाएंगे? क्या आज़म सुलह के मूड में हैं या फिर यही ताने आगे भी राजनीति का हिस्सा बने रहेंगे?
एक तरफ अखिलेश को 2027 के लिए एक मज़बूत मुस्लिम चेहरा चाहिए, वहीं आज़म अपने सम्मान और पार्टी में स्थान को लेकर सतर्क हैं। ऐसे में यह मुलाक़ात सिर्फ एक राजनीतिक शिष्टाचार होगी या किसी नए समीकरण की शुरुआत — यह देखना दिलचस्प होगा।