अनभिज्ञ : मानव जीवन, घमंड, समय की सत्ता, और सत्य का बोध कराती रश्मि शुक्ला की कविता

Authored By: News Corridors Desk | 03 Jun 2025, 03:45 PM
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एक था ऐसा पत्ता,
हर पल यह सोचता रहता l


 मैं हूँ इतना हरा- भरा,
 फिर कैसे गिर जाऊंगाl


 इस घमंड में झूम-झूम कर,
 समय चक्र से  अज्ञ रहा l 


 डाली ने लिया जब हाथ छुड़ा,
 हुई योजना उसकी धूमिल l


 हवा की उन तूफानी लहरों में,
 अपना वजूद सब भूल गया l


अटल सत्य का ज्ञान था,
उससे वह बिल्कुल अनजान रहा l


समय रहते सोच ना पाया,
घमंड में वह झूमता रहा l


धरा पर गिरते ही मानो,
उसका वहम सब टूट गया,
जिससे अभी तक अनभिज्ञ रहा l

 

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