बागेश्वर धाम सरकार के प्रमुख पंडित धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री ने हाल ही में तीन देशों – ऑस्ट्रेलिया, फिजी और न्यूजीलैंड की आध्यात्मिक यात्रा पूरी की। इस यात्रा के दौरान उन्हें वहां बसे भारतीय मूल के लोगों के साथ-साथ स्थानीय जनप्रतिनिधियों से भी भरपूर सम्मान मिला। धर्म और संस्कृति के प्रचार-प्रसार के इस अभियान में बागेश्वर महाराज जहां भी गए, वहां के श्रद्धालुओं का उत्साह देखने लायक था।
न्यूजीलैंड में बागेश्वर धाम पर विश्वविद्यालय का शोध
न्यूजीलैंड के ऑकलैंड शहर में आयोजित कथा कार्यक्रम के दौरान वेलिंगटन स्थित मैसी यूनिवर्सिटी की तीन सदस्यीय टीम ने बागेश्वर धाम सरकार पर शोध किया। टीम का नेतृत्व कर रहे ओस्कर मरीशन और उनके साथियों ने तीन दिनों तक लगातार कार्यक्रम में भाग लेकर बागेश्वर धाम सरकार के कार्यों, जीवनशैली और जनसंपर्क शैली का अध्ययन किया।
इस दौरान उन्होंने:
बागेश्वर धाम सरकार का विशेष इंटरव्यू लिया
श्रद्धालुओं से उनके अनुभव पूछे
आयोजन की व्यवस्थाओं का अवलोकन किया
और हर छोटी-बड़ी घटना को कैमरे में रिकॉर्ड किया
शोधकर्ताओं को मिला बागेश्वर धाम सरकार का आशीर्वाद
शोध के समापन पर पंडित धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री ने शोधकर्ताओं को बागेश्वर बालाजी की प्रतीकात्मक पट्टिका पहनाकर उन्हें आशीर्वाद प्रदान किया। यह क्षण न केवल शोधकर्ताओं के लिए खास था, बल्कि वहां मौजूद श्रद्धालुओं के लिए भी प्रेरणास्रोत बन गया।
कौन हैं बाबा बागेश्वर?
बागेश्वर धाम मध्यप्रदेश के छतरपुर जिले के गड़ागंज गांव के पास स्थित एक प्राचीन हनुमान मंदिर है, जिसे अब ‘बागेश्वर धाम सरकार’ के नाम से जाना जाता है।
पंडित धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री का जीवन:
जन्म: 1996, गड़ागंज गांव, छतरपुर
पिता: रामकृपाल गर्ग, माता: सरोज गर्ग
छोटे भाई: शालिग्राम गर्ग जी महाराज, जो भी धाम से जुड़े हैं
बचपन में आर्थिक संघर्ष के बीच 11 वर्ष की उम्र से ही पूजा-पाठ शुरू किया
दादा पं. भगवान दास गर्ग भी मंदिर के पुजारी रहे, जिन्होंने चित्रकूट के निर्मोही अखाड़े से दीक्षा ली थी
बचपन से ही धार्मिक प्रवृत्ति के रहे धीरेंद्र शास्त्री को लोग अब 'बाबा बागेश्वर' के नाम से जानने लगे हैं। वह हमेशा हनुमान जी की एक छोटी गदा अपने साथ रखते हैं और कहते हैं कि इससे उन्हें दिव्य ऊर्जा मिलती है।
बाबा बागेश्वर सिर्फ धार्मिक कथाओं और चमत्कारों के लिए नहीं, बल्कि मानवता, सेवा और आध्यात्मिक जागरूकता के लिए भी प्रसिद्ध हैं। देश और विदेश में बसे भारतीयों के लिए उनकी कथाएं सांस्कृतिक जुड़ाव का सेतु बन रही हैं।