कुछ साल पहले तक मास्क, सैनिटाइजर और सोशल डिस्टेंसिंग जैसे शब्द केवल अस्पतालों या मेडिकल किताबों में मिलते थे। लेकिन कोरोना महामारी ने इन शब्दों को हमारी रोजमर्रा की जिंदगी का अभिन्न हिस्सा बना दिया। वायरस का हर नया वैरिएंट एक नई चुनौती बनकर आता है, जिससे निपटने के लिए हमारी तैयारियां भी लगातार जारी हैं।
क्या पुरानी वैक्सीन नए वैरिएंट्स पर असरदार है?
यह सवाल आज हर किसी के मन में है। वैज्ञानिकों के मुताबिक, पुराने वैरिएंट्स के लिए बनाई गई वैक्सीन कुछ हद तक नए वैरिएंट्स के खिलाफ भी सुरक्षा देती है। लेकिन यह सुरक्षा समय के साथ कम हो सकती है। ऐसे में बूस्टर डोज़ और अपडेटेड वैक्सीन की भूमिका महत्वपूर्ण हो जाती है।
हेल्थ एजेंसियां और फार्मा कंपनियां कोरोना वैक्सीन को लगातार नए वैरिएंट्स के अनुसार अपडेट कर रही हैं। कई कंपनियां बायवैलेंट (दो वैरिएंट्स के लिए प्रभावी) या मल्टी-वैरिएंट वैक्सीन पर काम कर रही हैं। इन वैक्सीन का मकसद अधिक सुरक्षा देना है, खासतौर पर उन वैरिएंट्स के खिलाफ जो पहले से अलग और अधिक संक्रामक हैं।
भारत में क्या स्थिति है?
भारत में फिलहाल कोरोना के मामले कम हैं, लेकिन इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (ICMR) और अन्य संस्थान नए वैरिएंट्स पर नजर बनाए हुए हैं। पिछले साल सरकार ने एक संशोधित बूस्टर डोज़ लॉन्च किया था जो नए वैरिएंट्स को ध्यान में रखकर तैयार किया गया था।
हालांकि, वर्तमान में बड़े स्तर पर नए बूस्टर अभियान की जरूरत नहीं बताई जा रही है, लेकिन हालात बदल सकते हैं।
आम लोगों को क्या करना चाहिए?
बूस्टर डोज़ की जांच करें: अगर आपकी आखिरी वैक्सीन को 6 से 12 महीने हो चुके हैं, तो डॉक्टर से बूस्टर के बारे में सलाह जरूर लें।
विश्वसनीय स्रोतों से जानकारी लें: WHO, स्वास्थ्य मंत्रालय और ICMR की वेबसाइट से वैक्सीन से जुड़ी नई जानकारी प्राप्त करें।
मास्क और हाइजीन का पालन करें: भीड़भाड़ वाली जगहों में मास्क लगाना, हाथ धोना और दूरी बनाए रखना अब भी जरूरी है।
लक्षणों को हल्के में न लें: बुखार, खांसी, गले में खराश या थकान महसूस होने पर तुरंत टेस्ट कराएं।