मायावती की वापसी चंद्रशेखर आज़ाद पर भारी पड़ेगी ? सारा दलित वोट अब मायावती की ओर शिफ्ट हो जाएगा ?

Authored By: News Corridors Desk | 15 Sep 2025, 04:42 PM
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सवाल बड़ा है चंद्रशेखर रावण के लिए जो दलितों के बड़े नेता बनने का सपना देख रहे हैं, अगर 9 अक्टूबर को मायावती का शक्ति प्रदर्शन उनके पुराने फॉर्म को लौटाने वाला संबित हुआ तो उसका नतीजा क्या होगा ये किसी से छिपा नहीं है फिर यूपी में दलित राजनीति करने वालों को मायावती की छाया में ही राजनीति करनी पड़ेगी क्योंकि दलितों की मसीहा है मायावती…अपने शुरुआती दिनों में तो चंद्रशेखर ने मायावती के लिए कुछ नहीं बोला लेकिन अब वो मायावती के ख़िलाफ़ मुखर होते जा रहे हैं जिससे उनके और मायावती के बीच एक लकीर खिंचती नज़र आ रही है…शायद इसीलिए बिना नाम लिए मायावती एक बार उन्हें बरसाती मेंढक तक कह चुकी हैं…अब चंद्रशेखर के पास विकल्प क्या बचे हैं….ये जानना और समझना जरूरी है लेकिन उससे पहले समझ लेते हैं कि यूपी के अंबेडकरवादी समीकरण क्या कहते हैं …क्योंकि मायावती इज़ बैक…और हमने आज से तय किया है कि हम दलित शब्द की जगह मायावती और कांशीराम के आदर्श और दलितों के लिए भगवान समान अंबेडकर जी का नाम उनके साथ जोड़ेंगे अंबेडकरवादीऔर इसी शब्द का इस्तेमाल करेंगे क्योंकि हिंदुओं को जातियों में बांटने की सियासत पर ब्रेक लगाना जरूरी है, अगर हम ही उनको दलित, पिछड़ा, यादव कुर्मी में सियासी खबरों के लिए बांटते रहेंगे तो ये सुधरेगा कैसे…तो चलिए समझते हैं यूपी के अंबेडकरवादी समीकरण

मायावती की वापसी का मतलब है यूपी के जाटव वोट का एकजुट होना जो क़रीब यूपी की दलित आबादी का 55 फीसदी हिस्सा है…तो समझे खेल आधे से ज्यादा दलित मायावती के साथ चले जाएंगे और चूंकि चंद्रशेखर भी उसी जाटव समाज से आते हैं तो उनको सोचना पड़ेगा कि मायावती को छोड़कर उनके साथ कौन रहेगा और क्या उन्हें भी आकाश आनंद के नीचे मायावती के साथ काम करना पड़ेगा…आप भी सोचिए चलिए कुछ और दिलचस्प आंकड़े समझाते हैं


यूपी की कुल आबादी लगभग 24 करोड़ है, जिसमें अंबेडकरवादी यानि अनुसूचित जाति SC लगभग 21.1% हैं, यानी करीब 5 करोड़ लोग। 2024 के लोकसभा चुनाव में यूपी के कुल लगभग 15 करोड़ मतदाताओं में अंबेडकरवादी  वोटरों की संख्या 3-3.5 करोड़ के आसपास थ..क्योंकि मतदान प्रतिशत 57% था. अंबेडकरवादी में दलितों में जाटव (55%) प्रमुख हैं, जबकि पासी, वाल्मीकि आदि गैर-जाटव अंबेडकरवादी और हैं.. ये वोट बैंक यूपी की 80 लोकसभा सीटों में से 17 आरक्षित सीटों पर निर्णायक है।

2024 लोकसभा चुनावों में अंबेडकरवादी वोट का बंटवारा BSP के पतन के कारण बना…BJP ने पहले गैर-जाटव दलितों को लुभाया, लेकिन 2024 में SP-कांग्रेस गठबंधन ने PDA (पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक) फॉर्मूले से बड़ा हिस्सा अपने पाले में कर लिया

इसको और अच्छे से समझिए
मायावती की पार्टी को 2024 के चुनाव में कुल 12 फीसदी अंबेडकरवादी लोगों के वोट मिले
जिसमें से 44% जाटव और 15% ग़ैर जाटव जो पहले 68 और 30 फीसदी मिलते थे 
बीजेपी को क़रीब 29% अंबेडकरवादी लोगों के वोट मिले जिसमें जाटव वोट 17 फीसदी से बढ़कर 24 फीसदी तक पहुँच गया तो ग़ैर जाटव 48 से घटकर 29 तक पहुँच गया यानि मायावती का कोर वोट बीजेपी की ओर शिफ्ट हुआ और बाकी को अखिलेश यादव PDA के ज़रिए अपनी ओर खींचने में कामयाब रहे, जिस समाजवादी पार्टी से अंबेडकरवादी दूरी बनाकर रहते थे उन्होंने अखिलेश को 2024 में 56 फीसदी  वोट दिया…मायावती के 25% कोर वोटर अखिलेश के पाले में गए जबिक ग़ैर जाटव 56 फीसदी तक अखिलेश की ओर खिसक गए यानि PDA फॉर्मूला सब पर भारी पड़ा….तो मायावती तब तक शांत रहीं जब तक वोट शेयर बीजेपी की ओर जा रहा था लेकिन जैसे ही वो अखिलेश की ओर बढ़ना शुरु हुआ मायावती वापस एक्शन में आ चुकी हैं और इसका मतलब तो हर कोई यूपी की सियासत में सम झता है कि अगर मायावती खड़ी होंगी तो उसका चुनावों पर क्या असर होगा 

इसके साथ 9 अक्टूबर की रैली की तैयारी के लिए मायावती ने जिम्मेदारी दी है अपने सबसे भरोसेमंद सतीश चंद्र मिश्र को…उनके समय ही नारा लगा था हाथी नहीं गणेश हैं, ब्रह्मा विष्णु महेश हैं यानि अगड़ा वोटबैंक जो मायावती की कड़क सरकार से ख़ुश हो चुका है…तो इस बार चंद्रशेखर क्या करेंगे अगर मायावती इस प्लान पर आगे बढ़ रही हैं तो नगीना को बचाना और अंबेडकरवादी राजनीति यूपी में करना बहुत मुश्किल हो जाएगा…चंद्रशेखर के साथ साथ अखिलेश के लिए भी