बीते शुक्रवार, इजरायल ने जब "ऑपरेशन राइजिंग लॉयन" कर ईरान की राजधानी तेहरान में कई अहम ठिकानों पर जोरदार हमले किए, तो लोगों को ज्यादा हैरानी नहीं हुई । हालांकि इसकी टाइमिंग को लेकर जरूर सवाल उठाए गए क्योंकि हमला ऐसे वक्त में हुआ जब परमाणु कार्यक्रमों को लेकर ईरान और अमेरिका के बीच पांच साउंड की बातचीत हो चुकी थी और दो दिनों बाद ही छठे राउंड की बातचीत शुरू होने वाली थी । यह भी कहा जा रहा था कि ईरान की ओर से थोड़ा लचीला रूख अपनाने के संकेत भी दिए जा रहे थे ।
परन्तु छठे राऊंड की बातचीत शुरू हो उससे पहले ही इजरायल ने करीब 200 फाइटर डेट्स के साथ तेहरान पर जोरदार हमला बोल दिया । निशाने पर रहे नतांज़ का परमाणु केंद्र, बैलिस्टिक मिसाइल फैक्ट्रियां और सैन्य मुख्यालय । इजरायली हमलों में ईरान के सेना प्रमुख और कई अन्य बड़े सैन्य अधिकारियों के साथ-साथ नौ परमाणु वैज्ञानिक भी मारे गए । जवाब में शनिवार को ईरान ने भी इजरायल के प्रमुख शहरों पर मिसाइलें दागीं । और रविवार को तो जैसे जंग का बिगुल ही बज गया । तब से वार-पलटवार जारी है । नुकसान तो इजरायल को भी हो रहा है लेकिन ईरान में तबाही का मंजर है ।

इजरायल और ईरान क्यों बने दुश्मन ?
इजरायल और ईरान के बीच का टकराव नया नहीं है । इसकी जड़ें इतिहास और विचारधारा से जुड़ी हैं । साथ ही इसके रणनीतिक कारण भी हैं । दोनों देशों के बीच की दुश्मनी की जड़ें 1979 की ईरानी इस्लामी क्रांति में हैं ।
इस क्रांति के बाद जब ईरान में कट्टरपंथियों का शासन आया तो उसके प्रमुख अयातुल्ला खुमैनी ने इजरायल को "अवैध कब्जा" करार दिया और उसके खिलाफ जिहाद की वकालत की । उसके बाद से ईरान ने हमास, हिजबुल्लाह और हूथियों जैसे कई प्रॉक्सी गुटों को इजरायल के खिलाफ खड़ा किया ।
तबसे ये आतंकी गुट इजरायल को निशाना बनाते रहते हैं । हालांकि इजरायल भी उसके खिलाफ की जाने वाली किसी भी हिंसक कार्रवाई का मुंहतोड़ जवाब देता रहा है । यह टकराव 7 अक्टूबर 2023 के बाद से और बढ़ गया जब हमास के आतंकियों ने इजरायल में घुसकर 1200 निहत्थे और निर्दोष लोगों की निर्ममता से हत्या की ।
उन वहशियों ने मासूम बच्चों और महिलाओं को भी नहीं छोड़ा । हमास के आतंकी करीब 70 लोगों को बंधक भी बना कर अपने साथ ले गए । इसके बाद इजरायल ने हमास के खिलाफ गाजा में सैन्य कार्रवाई शुरू की जो अबतक जारी है ।
इस दौरान ईरान समर्थित हमास और लेबनान का आतंकी संगठन हिजबुल्लाह को भी इजरायल ने करीब-करीब तबाह कर दिया है । ईरान ने हमास और फिलिस्तिनियों को खुला समर्थन देता रहा है जिससे इजरायल के साथ टकराव और बढ़ा ।

इजरायल ने ईरान पर क्यों किया हमला?
इजरायल और ईरान के बीच तनाव की जड़ें ऐतिहासिक, वैचारिक और रणनीतिक हैं। हाल के हमलों के कारणों को समझने के लिए हमें कुछ प्रमुख बिंदुओं पर ध्यान देना होगा ।
1. ईरान का परमाणु कार्यक्रम
ईरान परमाणु बम बनाना चाहता है । इस योजना पर वह कई वर्षों से काम कर रहा है । ईरान का कहना है कि उसका परमाणु कार्यक्रम सेल्फ डिफेंस के लिए है , परन्तु इजरायल ईरान के परमाणु कार्यक्रम को अपने अस्तित्व के लिए खतरा बताता है । ईरान जिस तरह से इजराल को धमकी देता रहा है उससे भी इस आरोप को बल मिला है । इजरायल मानता है कि ईरान परमाणु हथियार विकसित करने के करीब पहुंच चुका है। अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (IAEA) की एक रिपोर्ट में कहा गया कि ईरान के पास 60% तक संवर्धित यूरेनियम है, जो नौ परमाणु बम बनाने के लिए पर्याप्त हो सकता है। इसने इजरायल और अमेरिका को कार्रवाई के लिए रास्ता दिया और इजरायल ने ईरान के नतांज और अन्य परमाणु ठिकानों पर हमले किए ।
2. ईरान के प्रॉक्सी हमले
ईरान हमास, हिजबुल्लाह और यमन के हूती विद्रोहियों जैसे प्रॉक्सी समूहों के माध्यम से इजरायल पर अप्रत्यक्ष हमला करता रहा है । 7 अक्टूबर 2023 को हमास ने इजरायल पर जिस तरह से आतंकी हमला किया उसके पीछे भी ईरान का हाथ होने की बात कही गई । इसके अलावा, ईरान और इजरायल के बीच टकराव बढ़ गया था जिसके बाद दोनों देशों ने एक दूसरे पर हमले किए थे । 13 जून 2025 को ऐसे ही एक घटनाक्रम में ईरान ने तेल अवीव पर 100 से अधिक बैलिस्टिक मिसाइलें दागी थी जिसमें से ज्यादातर को इजरायली एयर डिफेंस सिस्टम ने हवा में ही नाकाम कर दिया था ।
3. क्षेत्रीय प्रभुत्व की होड़
ईरान और इजरायल दोनों ही देश पश्चिम एशिया में अपनी रणनीतिक स्थिति मजबूत करने की कोशिश में हैं । ईरान सीरिया, लेबनान और यमन में अपने प्रभाव को बढ़ा रहा है, जबकि इजरायल अब्राहम समझौते के बाद सऊदी अरब और यूएई जैसे खाड़ी देशों के साथ गठजोड़ कर रहा है। ईरान के बढ़ते प्रभाव को रोकने के लिए उसके सैन्य और परमाणु कार्यक्रमों पर रोक लगाना इजरायल के जरूरी था ।
4. अमेरिका का समर्थन
ईरान पर इजरायल के हमलों में अमेरिका का पूरा समर्थन रहा है। हालांकि अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने ताजा हमलों में अमेरिका की सीधी भागीदारी से साफ इनकार किया है लेकिन इजरायल के समर्थन में खुलकर बयान दे रहे हैं । वो ईरान को परमाणु समझौता न करने पर और भयावह नतीजा भुगतने की चेतावनी भी दे रहे हैं ।
दरअसल अमेरिका भी नहीं चाहता कि ईरान के पास परमाणु हथियार हो और पश्चिम एशिया में शक्ति संतुलन बिगड़े । इसलिए अमेरिकाने ईरान के परमाणु कार्यक्रम को रोकने के लिए लंबे समय से प्रतिबंध लगाए हैं और साथ में इजरायल की रक्षा के लिए सैन्य सहायता प्रदान करता रहा है।

इजरायल और अमेरिका अब क्या चाहते हैं?
ईरान पर इजरायल के हमले का मुख्य उद्देश्य उसके सामरिक ठिकानों को तबाह कर परमाणु कार्यक्रमों पर रोक लगाना है ताकि वह परमाणु हथियार विकसित न कर सके । इजरायली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने कहा भी है कि नतांज में हमले ने ईरान के परमाणु कार्यक्रम को "वर्षों पीछे" धकेल दिया है।
इजरायल ने तबरीज और करमानशाह जैसे मिसाइल बेसों को निशाना बनाकर ईरान की बैलिस्टिक मिसाइल क्षमता को भी नुकसान पहुंचाया है । इसका उद्देश्य ईरान की प्रत्यक्ष और प्रॉक्सी हमले की क्षमता को कम करना है।
इसके साथ ही इजरायल मध्य पूर्व में अपने सहयोगियों, जैसे सऊदी अरब और यूएई, के साथ गठजोड़ को मजबूत करना चाहता है। इसके लिए ईरान के प्रभाव को कम करना जरूरी है ।

अमेरिका के उद्देश्य
अमेरिका चाहता है कि ईरान 2015 के परमाणु समझौते (JCPOA) पर वापस आए, लेकिन डोनाल्ड ट्रम्प के नेतृत्व संभालने के बाद सख्त नीतियों के कारण यह प्रक्रिया रुक गई है। ट्रम्प ने चेतावनी दी है कि यदि ईरान समझौते का पालन नहीं करता, तो सैन्य कार्रवाई हो सकती है ।
इसके अलावा अमेरिका होर्मूज की खाड़ी से तेल आपूर्ति को सुरक्षित रखना चाहता है, जो वैश्विक तेल खपत का 20% हिस्सा है। ईरान द्वारा इस मार्ग को बंद करने की धमकी ने अमेरिका को सैन्य तैनाती बढ़ाने के लिए मजबूर किया है। क्योंकि इस मार्ग के बंद होने का दुनिया भर में नकारात्मक आर्थक असर पड़ेगा ।
अमेरिका इजरायल को अपना प्रमुख सहयोगी मानता है और उसकी सुरक्षा के लिए प्रतिबद्ध है। इसीलिए उसने डिएगो गार्सिया में बी-52 बॉम्बर और एफ-15 विमानों की तैनाती कर रखी है।