कुछ समय पहले तक टमाटर के दाम आसमान छू रहे थे, लेकिन अब अचानक इनमें भारी गिरावट आ गई है। मध्य प्रदेश के मालवा-निमाड़ क्षेत्र में टमाटर के दाम घटकर महज दो रुपये प्रति किलो तक पहुंच गए हैं। इस गिरावट से किसानों को भारी नुकसान हो रहा है, क्योंकि वे अपनी उत्पादन लागत तक नहीं निकाल पा रहे हैं।
लागत निकलना भी मुश्किल
किसानों के अनुसार, टमाटर के इतने कम दाम होने से तोड़ने और परिवहन का खर्च भी पूरा नहीं हो रहा है। अचानक आई इस गिरावट के पीछे बंपर उत्पादन को प्रमुख कारण बताया जा रहा है। दिलचस्प बात यह है कि किसान जहां टमाटर को मात्र दो रुपये किलो में बेचने को मजबूर हैं, वहीं आम जनता को यही टमाटर 10 से 20 रुपये किलो में मिल रहा है।
टमाटर उत्पादन के प्रमुख क्षेत्र
मध्य प्रदेश के कई जिलों में बड़े पैमाने पर टमाटर का उत्पादन होता है, जिनमें प्रमुख हैं:
झाबुआ
धार
रतलाम
शाजापुर
मंदसौर
खंडवा
खरगोन
बड़वानी
धार जिले में टमाटर की खेती लगभग 350 हेक्टेयर में की जाती है, जिसमें बदनावर क्षेत्र में ही 100 हेक्टेयर में इसकी खेती होती है। एक बीघा खेत से लगभग 800 से 1000 क्रेट टमाटर का उत्पादन होता है।
100 रुपये किलो तक पहुंच गए थे दाम
कुछ समय पहले टमाटर के दाम 100 रुपये प्रति किलो तक पहुंच गए थे। इसे देखते हुए इस बार किसानों ने बड़ी मात्रा में टमाटर की खेती की। इस दौरान मौसम भी अनुकूल रहा, पाला नहीं पड़ा और फसल को कोई बड़ा नुकसान नहीं हुआ। इसके अलावा, महाराष्ट्र और गुजरात से भी भारी मात्रा में टमाटर की आपूर्ति बढ़ गई। साथ ही, बेंगलुरु से भी टमाटर बाजार में आया, जिससे कीमतों में भारी गिरावट देखने को मिली।
खेतों में ही सड़ रहा टमाटर
बड़वानी क्षेत्र में जनवरी में किसानों ने टमाटर के बेहद कम दामों के चलते उन्हें मवेशियों को खिला दिया था या खेतों में ही फेंक दिया था। अब मार्च में भी यही स्थिति बन गई है। किसानों को टमाटर के इतने कम दाम मिल रहे हैं कि वे इसे बेचने के बजाय खेतों में सड़ने के लिए छोड़ने को मजबूर हो गए हैं।
इंदौर में 10 से 20 रुपये किलो टमाटर
इंदौर की चोइथराम मंडी में टमाटर के थोक दाम 5 से 10 रुपये और खेरची दाम 10 से 20 रुपये प्रति किलो के बीच बने हुए हैं। खरगोन जिले में भी टमाटर 6 से 7 रुपये प्रति किलो बिक रहा है, जबकि खंडवा जिले में यह 5 से 7 रुपये प्रति किलो के आसपास बना हुआ है।
किसानों के लिए चिंता का विषय
किसानों को इस स्थिति से बड़ा नुकसान हो रहा है, क्योंकि वे न केवल अपनी लागत निकालने में असमर्थ हैं, बल्कि परिवहन और श्रम लागत भी वहन नहीं कर पा रहे हैं। यदि सरकार या संबंधित विभागों द्वारा कोई ठोस कदम नहीं उठाए गए, तो यह संकट और गहरा सकता है।