"जो बालासाहेब नहीं कर पाए, वो फडणवीस ने कर दिखाया"...20 साल बाद भाई उद्धव के साथ मंच पर आकर बोले राज

Authored By: News Corridors Desk | 05 Jul 2025, 01:58 PM
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महाराष्ट्र की राजनीति में शनिवार का दिन ऐतिहासिक बन गया । करीब दो दशकों से अलग-अलग राहों पर चल रहे ठाकरे परिवार के दो भाई ( चचेरे ) राज ठाकरे और उद्धव ठाकरे एक ही मंच पर नजर आए । इससे पहले 2005 में दोनों भाई एक साथ नजर आए थे । ठाकरे बंधुओं के इस मिलन की जितनी चर्चा हो रही है उससे ज्यादा सुर्खियां बटोर रहा है राज ठाकरे का बयान जो उन्होंने मंच से दिया है । 

वर्ली के एनएससीआई डोम में आयोजित ‘आवाज मराठीचा’ महारैली में राज ठाकरे ने कहा, "जो बालासाहेब नहीं कर पाए, वो देवेंद्र फडणवीस ने कर दिखाया, उन्होंने मुझे और उद्धव को एक साथ खड़ा कर दिया।” महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (MNS) के प्रमुख राज ठाकरे ने कहा कि महाराष्ट्र किसी भी राजनीति से उपर है ।

उन्होंने सरकार के तीन-भाषा फॉर्मूले को वापस लेने के फैसले को मराठी अस्मिता की जीत करार देते हुए उन्होंने कहा कि, मुंबई को महाराष्ट्र से अलग करने की जो कोशिश की जा रही है, वह कभी कामयाब नहीं होगी । अगर किसी ने मुंबई पर हाथ डालने की हिम्मत की, तो मराठी मानुष का असली बल देखेगा । हालांकि मुंबई को महाराष्ट्र से कौन अलग करने की कोशिश कर रहा है इस बारे में उन्होंने खुलकर किसी का नाम नहीं लिया । 

अचानक उभरा हिंदी प्रेम राजनैतिक एजेंडा - राज ठाकरे 

राज ठाकरे ने पूछा कि अचानक हिंदी पर इतना जोर क्यों दिया जा रहा है? उन्होंने कहा कि एजेंडे के तहत हम पर हम पर हिंदी थोपने की कोशिश की जा रही है, लेकिन हम इसे बर्दाश्त नहीं करेंगे । मनसे प्रमुख ने कहा कि जब हमारे बच्चे इंग्लिश मीडियम में पढ़ते हैं तो हमारे मराठीपन पर सवाल उठते हैं. लेकिन जब बीजेपी नेताओं ने मिशनरी स्कूलों में पढ़ाई की, तब उनके हिंदुत्व पर किसी ने उंगली नहीं उठाई ।

 उन्होंने कहा कि बालासाहेब ठाकरे और उनके पिता श्रीकांत ठाकरे भी इंग्लिश मीडियम से पढ़े थे लेकिन मराठी को कभी नहीं छोड़ा । उन्होंने कहा कि, मैं ये मानता हूं कि देश की सभी भाषाएं अच्छी हैं, लेकिन हिंदी के नाम पर छोटे-छोटे बच्चों से जबरदस्ती नहीं सही जाएगी।

दक्षिण भारत का उदाहरण देते हुए राज ठाकरे ने कहा, "स्टालिन, कनीमोझी, जयललिता, एन. लोकेश, ए. आर. रहमान, सूर्या, सब इंग्लिश मीडियम से पढ़े हैं ।  क्या कोई उनका तमिल प्रेम कम समझता है? राज ठाकरे ने कहा कि महाराष्ट्र में लोगों को बांटने की कोशिश हो रही है । अब ये लोग जाति की राजनीति शुरू करेंगे. ताकि मराठी भाषा के लिए बनी एकता टूट जाए । 

'झगड़े में किसी को थप्पड़ मारा गया और वो गुजराती निकला तो क्या करें? '

मुंबई के मीरा रोड में पिछले दिनों हुई घटना का जिक्र करते हुए राज ठाकरे ने कहा कि इसे तूल देना ठीक नहीं है । राज ने कहा ,"अगर झगड़े में किसी को थप्पड़ मारा गया और वो गुजराती निकला तो क्या करें? क्या माथे पर लिखा होता है कि वो कौन है? उन्होंने कहा कि उनके कई गुजराती दोस्त हैं जो मराठी से प्रेम करते हैं । 

बता दें, हाल ही में मुंबई के मीरा रोड पर एक मिठाई की दुकान (जोधपुर स्वीट्स) के मालिक को महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के कार्यकर्ताओं ने सिर्फ इसलिए पीट दिया गया क्योंकि उसने मराठी भाषा में बात करने से इनकार कर दिया था। मारपीट का यह वीडियो सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो गया और इसके बाद मामले ने तूल पकड़ लिया ।

विवाद की जड़ कहां है ? 

हिंदी को लेकर विवाद तब गहराया जब सत्तारूढ़ महायुति गठबंधन द्वारा महाराष्ट्र के प्राथमिक विद्यालयों में हिंदी को तीसरी भाषा के रूप में अनिवार्य करने की बात कही गई । इसके बाद विपक्षी पार्टियों को एक मुद्दा मिल गया और विरोध शुरू हो गया । उद्धव और राज ठाकरे दोनों ने इस प्रस्ताव का कड़ा विरोध किया है । माहौल को देखते हुए आखिरकार सरकार को इस नीति को वापस लेना पड़ा ।

 इस मुद्दे ने दोनों भाई राज ठाकरे और उद्धव ठाकरे को एक मंच पर लाने में अहम भूमिका निभाई । हालांकि दोनों भाईयों को एक मंच पर लाने की पहले से भी कोशिशें की जा रही थी, परन्तु ताजा घटनाक्रम ने उसमें काफी अहम भूमिका निभाई है ।

सियासी समीकरणों में बदलाव के संकेत

राज और उद्धव दोनों बालासाहेब ठाकरे की विरासत से निकले नेता हैं, लेकिन पिछले दो दशकों से इनकी राजनीतिक राहें जुदा रही हैं । बालासाहेब की राजनैतिक विरासत हासिल करने की लड़ाई में उद्धव से पिछड़ने के बाद राज ठाकरे ने 2006 में शिवसेना से अलग होकर महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (MNS) की स्थापना की । उद्धव ने शिवसेना को संभाला और बाद में मुख्यमंत्री पद तक पहुंचे । बाल ठाकरे के जीवनकाल में दोनों भाइयों के बीच एकता संभव नहीं हो सकी, लेकिन आज वो एक साथ मंच पर आ गए । 

राज और उद्धव की यह मुलाकात केवल भाषाई मुद्दे तक सीमित नहीं है । भाषा के जरिए कोशिश उस राजनैतिक जमीन को वापस पाने की भी है जो बालासाहब ठाकरे के जाने के बाद से काफी हद तक खिसक चुकी है । उद्धव पिता की राजनैतिक विरासत को ठीक से संभाल पाने में अबतक असफल रहे हैं ।

उधर राज ठाकरे भी अबतक अपने लिए ठोस राजनीतिक जमीन तैयार नहीं कर पाए हैं । यहीं से पुनर्मिलन का भाव उभरता है और इसके लिए कोशिशें शुरू होती है । अब अगर राज और उद्धव एक साथ चलने का फैसला लेते हैं तो आनेवाले दिनों में महाराष्ट्र में राजनैतिक समीकरण बदल सकते हैं ।