यूपी में मुस्लिम आबादी करीब 20% है- यानी लगभग 143 विधानसभा सीटों पर इसका फर्क पड़ सकता है। इतिहास में सपा, बसपा और कांग्रेस ने मुस्लिम वोट बैंक पर बहुत निर्भरता रखी है। लेकिन 2025 आते-आते, मुस्लिम नेतृत्व लगभग सपा के आजम खान, कांग्रेस के इमरान मसूद और अंसारी परिवार के इर्द-गिर्द सिमट गया है।
मुस्लिम राजनीति चंद चेहरों तक सीमित
2024 लोकसभा चुनावों में सपा के चार मुस्लिम उम्मीदवार - मोहिबुल्लाह, जिया-उर-रहमान, अफजाल अंसारी और इकरा हसन - सभी जीते। लेकिन अब तक उनकी राजनीतिक पकड़ कमजोर पड़ गई है क्योंकि कई को कानूनी मुकदमों और जेल की चुनौतियों का सामना करना पड़ा है।
यूपी में 2022 विधानसभा चुनावों में मुस्लिम विधायक 34 थे, जिनमें ज्यादातर सपा से थे। लेकिन लोकसभा में मुस्लिम सांसदों की संख्या सिर्फ 5 है - और वे सभी विपक्ष से हैं। ये नेता मुख्य रूप से पश्चिमी और पूर्वांचल यूपी से आते हैं, जहां मुस्लिम वोट निर्णायक भूमिका निभाते हैं।
पुराने मुस्लिम नेताओं का राजनीतिक पतन
पुराने मुस्लिम नेता जैसे आजम खान, मुख्तार अंसारी और अतीक अहमद का राजनीतिक वजूद अब पहले जैसा नहीं रहा -अधिकांश जेल, मुकदमे या समय की मार झेल चुके हैं। नई पीढ़ी जैसे इकरा हसन - कोशिश कर रही है, लेकिन उन्हें भरपूर अवसर नहीं मिल पा रहे हैं।
टिकट की कमी, ध्रुवीकरण और संगठन की कमजोरी मुस्लिम नेतृत्व को आगे बढ़ने में बाधा बनी हुई है। यदि पार्टियाँ नए मुस्लिम चेहरों को मौका दें और संगठन मजबूत करें, तो राजनीति में एक नए दौर की शुरुआत हो सकती है। वरना, मौजूदा हालात ही कायम रहेंगे- यानी राजनीति मुसलमानों के लिए सिर्फ वोट बैंक तक सीमित रहेगी।