हाल के दिनों में भारत और अमेरिका के बीच व्यापारिक रिश्तों में तनाव और उम्मीद दोनों के रंग देखने को मिल रहे हैं। एक तरफ अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को अपना "सबसे अच्छा दोस्त" बताते हुए दोनों देशों के बीच व्यापारिक समझौते को जल्द अंतिम रूप देने की बात कही है। वहीं, दूसरी तरफ उनके व्यापार सलाहकार पीटर नवारो ने भारत पर तीखे हमले किए हैं, जिसमें भारत को अमेरिकी नौकरियां छीनने और रूस के साथ तेल व्यापार के जरिए यूक्रेन युद्ध को बढ़ावा देने का आरोप शामिल है। आइए, इस जटिल स्थिति को विस्तार से समझते हैं।
ट्रंप का दोस्ताना रवैया
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने हाल ही में भारत के साथ अपने व्यक्तिगत और राजनयिक रिश्तों को मजबूत करने की इच्छा जाहिर की है। 9 सितंबर 2025 को अपने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ट्रुथ सोशल पर एक पोस्ट में ट्रंप ने लिखा, "भारत और अमेरिका के बीच व्यापारिक समझौते में जो बाधाएं हैं, उन्हें दूर करने के लिए बातचीत जारी है। मुझे पूरा भरोसा है कि मेरे अच्छे दोस्त प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ जल्द ही इस मुद्दे पर सकारात्मक नतीजे निकलेंगे।"
ट्रंप ने बार-बार पीएम मोदी के साथ अपनी निजी दोस्ती का जिक्र किया है। उन्होंने 7 सितंबर 2025 को व्हाइट हाउस में एक बयान में कहा, "पीएम मोदी मेरे सबसे खास दोस्तों में से एक हैं। भारत और अमेरिका का रिश्ता विशेष है, और मुझे यकीन है कि हम व्यापारिक मतभेदों को सुलझा लेंगे।" ट्रंप का यह बयान उस समय आया है जब दोनों देशों के बीच व्यापारिक तनाव चरम पर है। अमेरिका ने भारत पर 25 फीसदी रेसिप्रोकल टैरिफ और रूस से तेल खरीदने के लिए अतिरिक्त 25 फीसदी टैरिफ लगाया है, जिससे भारत पर कुल 50 फीसदी टैरिफ का बोझ पड़ रहा है। यह दुनिया में किसी भी देश पर लगाया गया सबसे ऊंचा टैरिफ है।
ट्रंप का यह दोस्ताना रवैया भारत-अमेरिका संबंधों को बेहतर करने की कोशिश का संकेत माना जा रहा है। विशेषज्ञों का मानना है कि ट्रंप की यह टिप्पणी आगामी व्यापार वार्ताओं में सकारात्मक माहौल बनाने की दिशा में एक कदम हो सकती है।
पीटर नवारो का भारत पर हमला
ट्रंप के सकारात्मक बयानों के ठीक उलट, उनके व्यापार सलाहकार पीटर नवारो ने भारत के खिलाफ तीखा रुख अपनाया है। 10 सितंबर 2025 को सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर एक पोस्ट में नवारो ने भारत को "अमेरिकी बाजारों तक पहुंच के लिए बेचैन" बताते हुए कहा, "अमेरिका को भारत के साथ घाटे का व्यापार करने की कोई जरूरत नहीं है। भारत अमेरिकी बाजारों और स्कूलों तक पहुंच चाहता है, लेकिन वह अमेरिकी नौकरियां छीनना जारी रखना चाहता है।"
नवारो ने भारत पर रूस से कच्चा तेल खरीदने का आरोप लगाते हुए कहा कि इससे मॉस्को को आर्थिक लाभ हो रहा है, जो यूक्रेन युद्ध को बढ़ावा दे रहा है। उन्होंने लिखा, "भारत के ऊंचे टैरिफ और रूस से तेल खरीद की वजह से अमेरिका को भारत के साथ भारी व्यापार घाटा सहना पड़ रहा है।" नवारो ने पहले भी भारत के तेल व्यापार को "ब्राह्मणों की मुनाफाखोरी" जैसे विवादास्पद शब्दों से जोड़ा था, जिसकी भारत में कड़ी आलोचना हुई थी।
भारत-अमेरिका व्यापारिक तनाव की पृष्ठभूमि
भारत और अमेरिका के बीच व्यापारिक रिश्ते पिछले दो दशकों में शायद अपने सबसे निचले स्तर पर हैं। अमेरिका का दावा है कि भारत के ऊंचे टैरिफ और रूस से तेल खरीदने की नीति की वजह से दोनों देशों के बीच व्यापार असंतुलन बढ़ रहा है। अमेरिका के आंकड़ों के मुताबिक, भारत के साथ उसका व्यापार घाटा 2024 में 40 अरब डॉलर से अधिक रहा। दूसरी ओर, भारत का कहना है कि वह रूस से तेल खरीदकर अपनी ऊर्जा जरूरतों को पूरा कर रहा है, और यह उसकी राष्ट्रीय नीति का हिस्सा है।
अमेरिका द्वारा लगाए गए 50 फीसदी टैरिफ ने भारतीय निर्यातकों, खासकर टेक्सटाइल, फार्मास्यूटिकल्स और आईटी सेक्टर को भारी नुकसान पहुंचाया है। भारत ने जवाब में अमेरिकी उत्पादों, जैसे बादाम, सेब और स्टील, पर अतिरिक्त टैरिफ लगाए हैं, जिससे दोनों देशों के बीच तनाव और बढ़ गया है। ट्रंप के बयानों से लगता है कि वह भारत के साथ व्यापारिक रिश्तों को बेहतर करने के लिए उत्सुक हैं। उनकी पीएम मोदी के साथ निजी दोस्ती और सकारात्मक बयानबाजी इस दिशा में एक उम्मीद जगाते हैं। हालांकि, नवारो जैसे सलाहकारों के तीखे बयान और अमेरिका की "अमेरिका फर्स्ट" नीति इस रास्ते में चुनौतियां पैदा कर रही है।
विशेषज्ञों का मानना है कि भारत और अमेरिका के बीच व्यापारिक समझौता दोनों देशों के लिए फायदेमंद हो सकता है, बशर्ते टैरिफ और व्यापार घाटे जैसे मुद्दों पर सहमति बन जाए। भारत अमेरिकी बाजारों तक बेहतर पहुंच चाहता है, जबकि अमेरिका भारत से अपने उत्पादों के लिए कम टैरिफ और अधिक बाजार खोलने की मांग कर रहा है।
भारत और अमेरिका के बीच व्यापारिक रिश्ते एक नाजुक मोड़ पर हैं। ट्रंप की दोस्ती भरी बातें और नवारो के तीखे बयान इस रिश्ते के दो अलग-अलग पहलू दिखाते हैं। आने वाले महीनों में दोनों देशों के बीच होने वाली व्यापार वार्ताएं इस बात का फैसला करेंगी कि क्या यह दोस्ती तनाव को कम कर पाएगी या फिर मतभेद और गहराएंगे। फिलहाल, दुनिया की दो बड़ी अर्थव्यवस्थाओं के बीच यह तनातनी वैश्विक व्यापार और कूटनीति पर गहरी नजर रखने वालों के लिए एक अहम मुद्दा बना हुआ है।