सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला- पहली बार राष्ट्रपति द्वारा विधयकों पर निर्णय लेने के लिए तय की समय सीमा

Authored By: News Corridors Desk | 12 Apr 2025, 03:11 PM
news-banner

सुप्रीम कोर्ट ने पहली बार राष्ट्रपति द्वारा विधेयकों पर निर्णय लेने के लिए समय सीमा तय की है । देश की शीर्ष अदालत ने अपने ऐतिहासिक फैसले में कहा है कि राज्यपाल की ओर से भेजे गए विधेयकों पर राष्ट्रपति को तीन महीने के भीतर निर्णय लेना अनिवार्य होगा ।
 
जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस आर महादेवन की बेंच ने संविधान के अनुच्छेद 201 का हवाला देते हुए कहा कि राष्ट्रपति द्वारा किए गए कार्य की न्यायिक समीक्षा की जा सकती है । उन्होने कहा कि राज्यपालों की ओर से भेजे गए बिल के मामले में राष्ट्रपति के पास पूर्ण वीटो या पॉकेट वीटो का अधिकार नहीं है। 

अनिश्चितकाल तक निर्णय को लंबित नहीं रखा जा सकता- सुप्रीम कोर्ट 

अपने आदेश में बेंच ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 201 के अनुसार, जब कोई विधेयक राज्यपाल द्वारा राष्ट्रपति के पास भेजा जाता है तो राष्ट्रपति को या तो उस पर सहमति देनी होती है या असहमति जतानी होती है ।  हालांकि, संविधान में फैसला लेने के लिए कोई समयसीमा तय नहीं की गई है । लेकिन अनिश्चितकाल तक अपने निर्णय को लंबित नहीं रखा जा सकता है । 

अदालत ने कहा कि अगर किसी कारण से फैसला लेने में देरी हो रही हो तो राज्य सरकार को लिखित में कारण दर्ज करते हुए इसकी सूचना दी जानी चाहिए । राष्ट्रपति द्वारा शक्तियों का प्रयोग कानून के इस सामान्य सिद्धांत से अछूता नहीं कहा जा सकता है । सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यदि निर्धारित समयसीमा के भीतर कोई कार्रवाई नहीं होती है तो संबंधित राज्य अदालत का दरवाजा खटखटा सकता है । 

तमिलनाडु सरकार और राज्यपाल के बीच के विवाद मामले में आया फैसला

सुप्रीम कोर्ट का फैसला तमिलनाडु सरकार और राज्यपाल एन रवि के बीच चल रहे विवाद को लेकर हुई सुनवाई के बाद आया है । तमिलनाडु सरकार ने राज्यपाल और राष्ट्रपति के पास लंबित पड़े दस विधयकों को लेकर सुप्रीम कोर्ट में अपील की थी ।  

जस्टिस जे बी पारडीवाला और आर महादेवन की बेंच ने सुनवाई के बाद अपने फैसले में कहा कि तमिलनाडु सरकार द्वारा पारित 10 विधेयकों को राज्यपाल द्वारा मंजूरी नहीं दिए जाने को गैरकानूनी बताया ।  उन्होने संविधान के अनुच्छेद 200 की व्याख्या करते हुए कहा था कि विधानसभा से पास बिल को राज्यपाल अनिश्चित काल तक नहीं रोक सकते। 

कोर्ट ने कहा था कि अगर राज्यपाल किसी विधेयक को राष्ट्रपति के पास भेजना चाहते हैं तो ऐसा एक महीने में करना होगा और यदि विधेयक को फिर से विचार के लिए विधानसभा के पास भेजना चाहते हैं तो उन्हें ऐसा तीन महीने के भीतर करना होगा । कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि अगर विधानसभा विधेयक को पुराने स्वरूप में वापस पास करती है तो राज्यपाल के पास उसे मंजूरी देने के अलावा कोई विकल्प नहीं है ।