9 अगस्त 2025 को पंजाब के रूपनगर से चलकर पहली बार कोई मालगाड़ी जब कश्मीर घाटी के अनंतनाग स्थित गुड्स शेड पर पहुंची, तो यह घटना इतिहास में दर्ज हो गई । यह सिर्फ एक रेलगाड़ी का आगमन भर नहीं था, बल्कि कश्मीर घाटी को देश के आर्थिक गतिविधियों से पूरी तरह जोड़ने की दिशा में उठाया गया एक ऐतिहासिक कदम है।
रेलवे ने जिन पटरियों को बिछाया है, उनपर भले ही ट्रेनें दौड़ती दिख रही हैं, लेकिन असल में तो ये कश्मीर की प्रगति की पटरी है । भारतीय रेलवे की इस पहल से आने वाले दिनों में कश्मीर घाटी की आर्थिक और सामाजिक दोनों ही तस्वीर बदलने वाली है । रेल की पटरियों का यह जुड़ाव केवल दूरी नहीं घटा रहा, बल्कि सपनों और संभावनाओं को करीब भी ला रहा है।
प्रगति और समृद्धि का दिन-प्रधानमंत्री
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी इस मौके को बेहद खास बताया । उन्होंने कहा कि जम्मू-कश्मीर में व्यापार और कनेक्टिविटी के लिहाज से यह एक शानदार दिन है। यह विकास और समृद्धि दोनों को बढ़ावा देगा। इससे कश्मीर के नागरिकों के लिए परिवहन की लागत कम होगी और व्यापार के नए रास्ते खुलेंगे ।
प्रधानमंत्री ने जो कहा उससे यह बात स्पष्ट होती है कि रेलवे का यह कदम सिर्फ एक बुनियादी सुविधा भर उपलब्ध कराने की कोशिश नहीं है, बल्कि यह मोदी सरकार की एक व्यापक रणनीति का हिस्सा है जिससे कश्मीर की बाजार में भागीदारी और आत्मनिर्भरता बढ़ेगी और यह क्षेत्र देश की मुख्यधारा से जुड़ेगा।
रेलवे बना कश्मीर घाटी के विकास का सेतु
भारतीय रेलवे अब कश्मीर घाटी को भारत के बड़े शहरों और अंतरराष्ट्रीय व्यापार मार्गों से जोड़ रहा है । रेलवे नेटवर्क से जुड़ने से सबसे बड़ा लाभ यह होगा कि कश्मीर के उत्पाद अब तेज़ी से और कम लागत में देशभर के बाज़ारों तक पहुंच सकेंगे । मालभाड़ा कम होने से व्यापारियों को बचत होगी और किसानों को अपनी फसलों के बेहतर दाम मिलेंगे । उपभोक्ताओं को भी बेहतर कीमतों पर अच्छे उत्पाद मिल सकेंगे । कश्मीर के उद्यमियों को भी देशभर में व्यापार बढ़ाने का सीधा रास्ता मिलेगा ।
फल और मेवों को मिलेगा देशव्यापी बाज़ार
कश्मीर लंबे समय से अपने बागानों और फलों के लिए प्रसिद्ध है। यहां के सेब, जिनमें रेड डिलीशियस, गोल्डन डिलीशियस और अम्बरी प्रमुख हैं, अब देश के हर कोने में और ताजगी के साथ भेजे जा सकेंगे। इसके साथ ही अखरोट, बादाम, खुबानी, नाशपाती, चेरी, आलूबुखारा, अंगूर और मुलबरी जैसे मेवों को भी सीधे बड़े बाज़ारों तक पहुंचने का रास्ता साफ हो गया है ।
कश्मीर का केसर, जिसे GI टैग प्राप्त है, दुनिया में अपनी खुशबू और गुणवत्ता के लिए जाना जाता है। रेलवे कनेक्टिविटी से अब इसकी ढुलाई आसान हो जाएगी । साथ ही लैवेंडर, गुलाब, गेंदा और ट्यूलिप जैसे फूलों की खेती को भी बढ़ावा मिलेगा ।
हस्तशिल्प को मिलेगी नई पहचान और बड़ा बाज़ार
पश्मीना शॉल, रेशमी और ऊनी कालीन, पेपर माशे की कलाकृतियां, अखरोट की लकड़ी पर की गई बारीक नक्काशी, नमदा गलीचे, सूज़नी कढ़ाई और चेन स्टिच वाल हैंगिंग्स जैसे कश्मीरी हस्तशिल्प अब रेलवे नेटवर्क के ज़रिये देश के बड़े-बड़े शहरों तक सीधे पहुंचेंगे । इससे कारीगरों को बेहतर दाम मिलेंगे और पारंपरिक कला को नई पहचान भी मिलेगी।
घाटी के पर्यटन से जुड़े हस्तशिल्प जैसे लघु हाउसबोट मॉडल, पारंपरिक कांगड़ी हीटर और तांबे के समोवर अब देशभर में और अंतरराष्ट्रीय बाजारों तक पहुंचाए जा सकेंगे। इससे पर्यटन और शिल्प उद्योग को भी मजबूती मिलेगी।
कुल मिलाकर देखें तो भारतीय रेलवे की इस पहल से कश्मीर अब न केवल भारत के हर कोने से भौगोलिक रूप से जुड़ गया है, बल्कि आर्थिक, सांस्कृतिक और सामाजिक रूप से भी मुख्यधारा में शामिल हो रहा है । जाहिर है इससे युवाओं के लिए रोजगार के नए अवसर तो पैदा होंगे ही, कश्मीर घाटी के समावेशी विकास को भी गति मिलेगी ।