बिहार में विधानसभा चुनाव का वक्त जैसे-जैसे नजदीक आ रहा है, राजनैतिक गतिविधियां भी तेज होती जा रही है । इसी सिलसिले में सोमवार को कांग्रेस खेमे में काफी हलचल रही । पार्टी नेता राहुल गांधी सुबह-सुबह मिशन बिहार पर बेगूसराय पहुंचे और करीब 11 बजे कन्हैया कुमार की अगुवाई में चल रहे 'नौकरी दो पलायन रोको ' यात्रा में शामिल हुए ।
करीब एक किलोमीटर की पैदल यात्रा के बाद राहुल गांधी वहां से पटना के लिए निकल गए । कांग्रेस कार्यकर्ताओं को उम्मीद थी कि राहुल गांधी कुछ बोलेंगे परन्तु ऐसा नहीं हुआ लेकिन यात्रा में उमड़ी भीड़ को देखकर राहुल गांधी काफी उत्साहित नजर आए । राहुल गांधी के पहुंचने से पार्टी कार्यकर्ताओं में भी उत्साह नजर आया । यात्रा के दौरान कार्यकर्ताओं ने उनके उपर फूल भी बरसाए । राहुल गांधी के आह्वान पर बड़ी संख्या में कांग्रेस कार्यकर्ता सफेद टीशर्ट पहन कर यात्रा में शामिल हुए ।
अति पिछड़ा वर्ग, दलितों और मुसलमानों पर फोकस
बेगूसराय के बाद राहुल गांधी ने पटना में संविधान सुरक्षा सम्मेलन को संबोधित किया और इसके बाद सदाकत आश्रम स्थित पार्टी के प्रदेश मुख्यालय में चुनावी तैयारियों को लेकर पार्टी नेताओं के साथ बैठक की ।
संविधान सुरक्षा सम्मेलन में अपने भाषण के दौरान राहुल गांधी ने स्पष्ट कर दिया कि बिहार में उनकी नजर अति पिछड़ा वर्ग, दलितों और मुसलमानों पर है । राहुल गांधी ने कहा कि उन्होने और पार्टी अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने स्थानीय नेताओं और कार्यकर्ताओं को स्पष्ट निर्देश दिए हैं कि उन्हे इन लोगों के लिए ही काम करना है ।
राहुल गांधी ने कहा कि पहले कांग्रेस के जिलाध्यक्षों में से दो तिहाई सवर्ण जाति के होते थे परन्तु अब दो तिहाई जिलाध्यक्ष पिछड़े, अति पिछड़े, दलित और अल्पसंख्यक समुदाय के हैं । हालांकि सच्चाई यह है कि अब भी सबसे अधिक 14 जिलाध्यक्ष सवर्ण समाज से आते हैं । हाल ही में कांग्रेस ने सभी 40 जिलों के अध्यक्ष के नामों की घोषणा की है ।
परंपरागत वोटर्स को फिर से जोड़ने की कोशिश
दरअसल कांग्रेस अपनी खोई जमीन पाने के लिए उन परंपरागत वोटर्स को फिर से जोड़ने की कोशिश कर रही है जो अब उनके साथ नहीं हैं । बिहार में दलितों को अपनी ओर करने के लिए कांग्रेस संविधान और आरक्षण को खतरे का डर दिखा रही है । 2024 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को उत्तर प्रदेश में इस फॉर्मूले से थोड़ी सफलता मिली थी । हालांकि बाद के कई विधानसभा चुनावों में कांग्रेस के लिए यह फॉर्मूला काम नहीं कर पाया । लेकिन पार्टी को अब भी इस फॉर्मूले में संभावना दिख रही है ।
इसी तरह से वक्फ बिल का संसद और संसद के बाहर जोरदार विरोध कर मुस्लिम समाज को भरोसे में लेने की कोशिश कर रही है । हालांकि राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस को मुस्लिम समाज का भरपूर समर्थन मिलता है . परन्तु राज्य स्तर पर स्थिति थोड़ी सी अलग है । बिहार में भी मुस्लिम समाज मुख्य रूप से लालू यादव की पार्टी राष्ट्रीय जनता दल के एमवाई यानि मुस्लिम यादव समीकरण का हिस्सा रहा है । कांग्रेस की कोशिश उन्हे फिर से अपने साथ जोड़ने की है । हालांकि कांग्रेस चुनावी गणित को ध्यान में रखते हुए सवर्णों का खुलकर नाम नहीं ले रही है, लेकिन पार्टी की नजर उनपर भी है ।
एक ओर सवर्ण समाज से आने वाले अखिलेश प्रसाद सिंह को हटा कर दलित समाज के राजेश राम को प्रदेश अध्यक्ष बनाया है , परन्तु दूसरी तरफ सवर्ण समाज से ही आने वाले युवा नेता कन्हैया कुमार के हाथों में एक तरह से चुनावी कैंपेन की डोर थमा दी है । इसके साथ ही शकील अहमद खान को विधानसभा में विधायक दल का नेता बना रखा है । जाहिर है इससे पार्टी लीडरशिप इससे एक बड़ा मैसेज देने की कोशिश कर रहा है ।
आरजेडी से बढ़ेगा टकराव या ज्यादा सीटों के लिए होगा कड़ा मोलभाव ?
कांग्रेस जिस तरह से बिहार में अपने परंपरागत वोटों को पाने के लिए समाजिक समीकरण तैयार करने में जुटी है , वह इंडी गठबंधन के सहयोगी राजद के लिए सबसे ज्यादा चिंता की बात हो सकती है । यदि कांग्रेस अपने लक्ष्य में सफल होती है तो इसका सबसे ज्यादा नुकसान तेजस्वी यादव की पार्टी को उठाना पड़ सकता है । लेकिन सवाल यह उठता है कि क्या वाकई में कांग्रेस इतने कम समय में सफल हो सकती है ?
इसकी संभावना काफी कम है । लेकिन इसके बावजूद राजद को नुकसान पहुंचा सकती है । राजनीति के जानकारों की मानें तो कांग्रेस को भी पता है कि आने वाले चुनाव में अकेले लड़ने पर उसके लिए अधिक संभावना नहीं दिखती है । लेकिन यदि जमीन पर मेहनत की जाए तो गठबंधन में अधिक सीटों के लिए राजद से बेहतर सौदेबाजी की जा सकती है । यदि ऐसा हुआ तब भी पार्टी को भविष्य के लिए अपनी राजनैतिक जमीन तैयार करने में मदद मिलेगी ।
बिहार चुनाव को लेकर क्यों उत्साहित है कांग्रेस ?
राजनैतिक हलकों में कांग्रेस और राजद के बीच दूरी बढ़ने की खबरें लगातार आ रही है । कन्हैया को मैदान में उतार कर कांग्रेस ने राजद को स्पष्ट संदेश देने की कोशिश की है । माना जाता है कि अबतक लालू यादव के विरोध के कारण ही कांग्रेस बिहार की राजनीति से कन्हैया को दूर रखा था । ऐसा माना जाता है कि लालू यादव कन्हैया को तेजस्वी के लिए खतरा मानते हैं इसलिए नहीं चाहते कि वो बिहार में सक्रिए हों ।
उधर कांग्रेस को अब इस बात का अच्छी तरह से एहसास हो चुका है कि तेजस्वी यादव में वो करिश्मा नहीं हैं जो लालू यादव में था । तेजस्वी भी राहुल गांधी की तरह से आम कार्यकर्ताओं से कट कर रहने वाले नेता हैं । ऐसे में कांग्रेस पार्टी को लगता है कि आनेवाले दिनों में उनका प्रभाव कम होगा और तब कांग्रेस के लिए संभावनाओं के द्वार खुलेंगे ।