बिहार वोटर लिस्ट वेरिफिकेशन मामले की SC में सुनवाई : जानिए दोनों पक्षों ने क्या-क्या दी दलीलें

Authored By: News Corridors Desk | 10 Jul 2025, 02:24 PM
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बिहार में मतदाता सूची के सत्यापन को लेकर आज सुप्रीम कोर्ट में बेहद अहम सुनवाई हो रही है। यह मामला अब महज़ एक प्रशासनिक प्रक्रिया नहीं रह गया, बल्कि देशभर में लोकतंत्र और नागरिक अधिकारों को लेकर गहराई से उठे सवालों का केंद्र बन चुका है। विपक्षी दलों ने आरोप लगाया है कि चुनाव आयोग की यह प्रक्रिया पक्षपातपूर्ण है और इसका उद्देश्य वंचित तबकों को मताधिकार से वंचित करना है। वहीं, आयोग और कुछ याचिकाकर्ता इसे "वोटर सूची की सफाई" का आवश्यक कदम बता रहे हैं।

विपक्षी दलों की याचिका

इस मामले में कांग्रेस, आरजेडी, टीएमसी, समाजवादी पार्टी, एनसीपी (शरद पवार गुट), सीपीएम, सीपीआई, शिवसेना (यूबीटी) और झारखंड मुक्ति मोर्चा जैसे विपक्षी दलों ने मिलकर सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है। याचिका में कहा गया है कि बिहार में जो सघन पुनरीक्षण प्रक्रिया अपनाई गई है, वह लाखों लोगों को मतदाता सूची से बाहर कर सकती है। याचिकाकर्ताओं ने यह भी आरोप लगाया कि खासतौर पर गरीब, महिलाएं और पिछड़े वर्ग इस प्रक्रिया से सबसे ज्यादा प्रभावित होंगे, क्योंकि उनके पास जरूरी दस्तावेज नहीं होते।

अश्विनी उपाध्याय: वोटिंग का अधिकार सिर्फ भारतीय नागरिकों को मिले

वहीं दूसरी ओर वरिष्ठ वकील अश्विनी उपाध्याय ने भी सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दाखिल की है, लेकिन इसका रुख बिलकुल उलट है। उन्होंने चुनाव आयोग के पक्ष में खड़े होकर कहा है कि मतदाता सूची से फर्जी और अवैध घुसपैठियों को हटाना अत्यंत आवश्यक है। उपाध्याय ने दावा किया कि पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश जैसे देशों से बड़ी संख्या में लोग भारत में घुसपैठ कर चुके हैं और उनका नाम वोटर लिस्ट में शामिल होना लोकतंत्र के लिए गंभीर खतरा है। उन्होंने 200 जिलों और 1500 तहसीलों में जनसंख्या संतुलन बिगड़ने का हवाला दिया।

सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट की पीठ — जिसमें जस्टिस सुधांशु धूलिया और जस्टिस जॉयमाल्या बागची शामिल हैं — ने चुनाव आयोग और याचिकाकर्ताओं दोनों की दलीलें सुनीं। आयोग का पक्ष पूर्व अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने रखा, जबकि याचिकाकर्ताओं की ओर से कपिल सिब्बल, गोपाल शंकरनारायणन और अभिषेक मनु सिंघवी जैसे वरिष्ठ वकील पेश हुए।

गोपाल शंकरनारायणन ने तर्क दिया कि 2003 के आधार पर पुनरीक्षण करना पूरी तरह अनुचित है क्योंकि अब राज्य में मतदाताओं की संख्या कई गुना बढ़ चुकी है। उन्होंने यह भी कहा कि आयोग की ओर से अनिवार्य किए गए 11 दस्तावेजों की मांग गरीब और अनपढ़ नागरिकों को वोटिंग से बाहर कर सकती है। कपिल सिब्बल ने सवाल उठाया कि क्या बिना नागरिकता सिद्ध हुए किसी व्यक्ति को सिर्फ दस्तावेज़ के आधार पर सूची से हटाया जा सकता है?

याचिकाकर्ताओं की ओर से यह सवाल भी उठाया गया कि जब आधार कार्ड को कानूनन एक वैध पहचान पत्र माना गया है, तो उसे इस प्रक्रिया में स्वीकार क्यों नहीं किया गया। गोपाल शंकरनारायणन ने कहा कि कई ऐसे दस्तावेज जो आधार के आधार पर जारी होते हैं — जैसे राशन कार्ड, पैन कार्ड — उन्हें आयोग मान्यता दे रहा है, लेकिन खुद आधार कार्ड को ही अस्वीकार कर रहा है, जो विरोधाभास पैदा करता है।

चुनाव आयोग के वकील ने इस पर तर्क दिया कि आधार कार्ड नागरिकता का प्रमाण नहीं है। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने सख्त रुख अपनाते हुए कहा कि नागरिकता तय करना चुनाव आयोग का अधिकार नहीं, बल्कि गृह मंत्रालय का है।

सुप्रीम कोर्ट की महत्वपूर्ण टिप्पणी

सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने साफ किया कि मतदाता सूची की शुद्धता एक वैध और आवश्यक प्रक्रिया है, लेकिन चुनाव से ठीक पहले इसे लागू करना मतदाताओं के संवैधानिक अधिकारों को प्रभावित कर सकता है। कोर्ट ने कहा कि अगर किसी व्यक्ति का नाम अचानक सूची से हटता है और उसे नागरिकता साबित करने की जटिल प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है, तो यह उसे आगामी चुनाव से बाहर कर सकता है — जो लोकतंत्र के लिए खतरा है।

जस्टिस बागची ने यह भी स्पष्ट किया कि आयोग को विशेष पुनरीक्षण का अधिकार RPA एक्ट की धारा 21(3) के तहत जरूर है, लेकिन प्रक्रिया निष्पक्ष और समयबद्ध होनी चाहिए।

चुनाव आयोग ने अपना पक्ष रखते हुए कहा कि 2003 के बाद पहली बार इतने बड़े पैमाने पर मतदाता सूची का सत्यापन किया जा रहा है। मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार ने कहा कि देशभर में घर-घर जाकर यह काम किया जाएगा ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि केवल योग्य भारतीय नागरिक ही वोटर लिस्ट में शामिल हों।

आयोग के अनुसार, इस अभियान की शुरुआत बिहार से हो रही है और उसके बाद असम, पश्चिम बंगाल, केरल, तमिलनाडु और पुडुचेरी में भी यह अभियान चलेगा। 2029 तक उत्तर प्रदेश, गुजरात, पंजाब, हिमाचल प्रदेश, गोवा और मणिपुर को भी इसमें शामिल किया जाएगा।

बिहार में इस मुद्दे को लेकर विपक्षी दल सड़कों पर उतर चुके हैं। पटना में राहुल गांधी और तेजस्वी यादव ने विरोध प्रदर्शन का नेतृत्व किया। तेजस्वी ने नवादा में कहा कि यह “वोट का अधिकार छीनने की साजिश” है। उन्होंने आरोप लगाया कि गरीबों को जानबूझकर इस प्रक्रिया से बाहर किया जा रहा है।

राहुल गांधी ने कहा कि यह सिर्फ चुनावी रणनीति नहीं, बल्कि लोकतंत्र पर सीधा हमला है। वहीं, बीजेपी नेता रविशंकर प्रसाद ने पलटवार करते हुए पूछा कि अगर यह प्रक्रिया केवल भारतीय नागरिकों को वोट देने की अनुमति सुनिश्चित करती है, तो विपक्ष इससे क्यों डर रहा है?