कोलकाता में अब साइनबोर्ड पर नहीं लिखा बांग्ला भाषा तो होगी कार्रवाई, जानिए क्या है पूरा मामला...

Authored By: News Corridors Desk | 07 Sep 2025, 03:23 PM
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महाराष्ट्र के बाद अब पश्चिम बंगाल में भी भाषा को लेकर विवाद और राजनीति शुरू हो गई है । कोलकाता नगर निगम ने हाल ही में एक नया सर्कुलर जारी करते हुए सभी दुकानों और व्यावसायिक प्रतिष्ठानों से कहा है कि वे अपने साइनबोर्ड पर बंगाली भाषा का इस्तेमाल करें। इसके लिए 30 सितंबर तक का समय दिया गया है । तय समय सीमा के भीतर ऐसा न करने वालों के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी ।

इस बारे में जारी आदेश के मुताबिक, कोलकाता नगर निगम क्षेत्र में आने वाली हर दुकानों सभी व्यापारिक प्रतिष्ठानों, कार्यालयों, नगर निगमों और अन्य संस्थानों को अपने साइनबोर्ड पर बंगाली में नाम लिखना होगा। यानी अब कोई भी साइनबोर्ड बंगाली भाषा के बिना नहीं लगेगा । इस ऑर्डर के जारी होने के बाद से दुकानदारों ने अपने साइनबोर्ड पर बांग्ला भाषा में लिखना शुरू कर दिया है । 

'बंगाली भाषा की पहचान और सम्मान के लिए उठाया कदम'

राज्य सरकार का कहना है कि यह फैसला भाषा की गरिमा बनाए रखने के लिए लिया गया है । ममता बनर्जी सरकार का तर्क है कि बीजेपी शासित राज्यों में बंगाल से गए प्रवासी मजदूरों के साथ भेदभाव किया जा रहा है। ऐसे में यह ज़रूरी है कि बंगाली भाषा और संस्कृति की पहचान को मजबूत किया जाए।

नगर निगम के कमिश्नर धवल जैन ने यह सर्कुलर शनिवार को जारी किया। इसमें साफ तौर पर कहा गया है कि सभी साइनबोर्ड पर बंगाली भाषा का इस्तेमाल अनिवार्य होगा । सर्कुलर में यह भी स्पष्ट किया गया है कि बांग्ला भाषा को अन्य भाषाओं के साथ नहीं बल्कि सबसे उपर लिखा जाएगा।

भाषाई पहचान को बचाने की कोशिश या चुनाव पर नजर ? 

पश्चिम बंगाल सरकार का कहना है कि राज्य में बंगाली भाषा को प्राथमिकता देने पर इसलिए जोर दिया जा रहा है ताकि उसकी पहचान और गौरव बना रहे । सर्कुलर में कहा गया है कि यह कदम व्यावसायिक और संस्थागत स्तर पर बांग्ला भाषा के उपयोग को बढ़ावा देने के लिए उठाया गया है ।

बंगाल सरकार चाहती है कि सार्वजनिक स्थलों पर स्थानीय भाषा को प्रमुखता दी जाए, ताकि लोगों में अपनी भाषा और संस्कृति को लेकर सम्मान की भावना बनी रहे । हालांकि राजनीति के कई जानकार इस फैसले को अगले साल राज्य में होनेवाले विधानसभा चुनाव से जोड़कर भी देख रहे हैं । उनका मानना है कि इस फैसले के जरिए ममता बनर्जी बंगाली अस्मिता की भावना को उभार कर अपनी चुनावी जमीन को मजबूत करने की कोशिश कर रही हैं ।