डोनाल्ड ट्रंप को शांति का नोबेल चाहिए था लेकिन किस्मत ने उन्हें‘नोबेल नॉट अवेलेबल’कहकर टाल दिया। भारत-पाकिस्तान के बीच तनाव हो या गाजा और यूक्रेन का युद्ध — ट्रंप खुद को ग्लोबल पीसमेकर मानते हैं। वे कई बार दावा कर चुके हैं कि उन्होंने सात देशों के बीच युद्ध टालने की कोशिश की है। लेकिन नोबेल कमेटी की नजरों में ये दावे तब भी काम नहीं आए।
अफ़सोस! उनका नामांकन तय समयसीमा के बाद भेजा गया था। और नियमों के हिसाब से नामांकन आया तो सही, मगर देर से, इसीलिए नोबेल कमेटी ने ट्रंप को सीधा रेस से बाहर कर दिया। यानि ट्रंप की नोबेल यात्रा वक्त की ट्रेन छूटने से पहले ही पटरी से उतर गई।
नामांकन 50 साल तक रहेंगे गुप्त: 338 दावेदारों की कड़ी टक्कर में नोबेल शांति पुरस्कार की दौड़
इस साल 338 दावेदारों को नोबेल शांति पुरस्कार के लिए नामांकित किया गया है। नोबेल समिति के अनुसार, यह पुरस्कार उन्हीं को दिया जाता है जिन्होंने राष्ट्रों के बीच भाईचारा बढ़ाने, हथियारों और सेनाओं में कटौती करने या शांति सम्मेलनों को मजबूत करने में उल्लेखनीय योगदान दिया हो।
नोबेल समूह के नियम के अनुसार, उम्मीदवारों के नाम 50 साल तक छिपाए जाते हैं। केवल सरकार के लोग, सांसद, कॉलेज या यूनिवर्सिटी के शिक्षक, पहले से पुरस्कार जीत चुके लोग और दुनिया भर के संगठन ही नाम भेज सकते हैं।
नामांकन से लेकर विजेता चुनने तक: नोबेल शांति पुरस्कार की प्रक्रिया
हर साल 31 जनवरी तक नोबेल शांति पुरस्कार के लिए नाम भेजने की प्रक्रिया पूरी हो जाती है। इसके बाद नोबेल समिति के सदस्य सभी नामों को ध्यान से देखते हैं। वे इस बात पर ध्यान देते हैं कि किस उम्मीदवार ने शांति के लिए कितना महत्वपूर्ण काम किया है।
चयन की प्रक्रिया में समिति के सदस्य आपस में चर्चा करते हैं। अगर सभी सदस्य किसी एक उम्मीदवार से सहमत हो जाते हैं, तो उसे विजेता घोषित किया जाता है। लेकिन अगर सहमति नहीं होती, तो वोटिंग कर के विजेता चुना जाता है।
इस तरह पूरी निष्पक्ष प्रक्रिया के बाद ही नोबेल शांति पुरस्कार का विजेता तय होता है। इस बार यह घोषणा 10 अक्टूबर 2025 को ओस्लो में की जाएगी।