इंडी गठबंधन में ओवैसी की पार्टी को नो एंट्री ! क्यों राजी नहीं हुए लालू-तेजस्वी ?

Authored By: News Corridors Desk | 04 Jul 2025, 05:54 PM
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असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्ताहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) को लालू यादव और तेजस्वी यादव ने झटका दे दिया है । उन्होंने इंडी गठबंधन में शामिल करने के एआईएमआईएम के प्रस्ताव को ठुकरा दिया है।

एआईएमआईएम के बिहार प्रदेश अध्यक्ष और पार्टी के इकलौते विधायक अख्तरुल ईमान ने राष्ट्रीय जनता दल (RJD) प्रमुख लालू प्रसाद यादव को पत्र लिखकर गठबंधन में शामिल करने की अपील की थी । अख्तरुल ईमान ने सेकुलर वोटों के बंटवारे को रोकने और सांप्रदायिक ताकतों को हराने के लिए एकजुट होने की बात कही थी।  

अख्तरुल ईमान ने कहा कि, हमने 2020 के विधानसभा और 2024 के लोकसभा चुनाव में भी साथ आने की कोशिश की, लेकिन हमारी बात नहीं मानी गई। अब फिर से हम एकजुट होकर चुनाव लड़ना चाहते हैं । लेकिन इस बार भी लालू और तेजस्वी नहीं माने। 

ओवैसी की पार्टी से क्यों डर रहे हैं RJD और कांग्रेस ?

तेजस्वी यादव ने कहा है कि एआईएमआईएम की ओर से कोई औपचारिक प्रस्ताव नहीं मिला । इसके अलावा गठबंधन में पहले से ही कांग्रेस, वामपंथी दल, माले और वीआईपी पार्टी शामिल हैं । लेकिन बात इतनी भर नहीं है । एआईएमआईएम को गठबंधन में शामिल न करने का फैसला काफी सोच-समझ कर लिया गया है । 

दरअसल RJD और कांग्रेस का मानना है कि ओवैसी के साथ गठबंधन से सियासी फायदा कम और नुकसान ज्यादा हो सकता है। खासकर, ओवैसी की कट्टर मुस्लिम नेता की छवि और उनके बयानों के कारण हिंदू वोटों का ध्रुवीकरण होने का खतरा है, जिससे बीजेपी को फायदा मिल सकता है।

इसके अलावा बिहार की राजनीति में मुस्लिम-यादव समीकरण RJD की ताकत रहा है। तेजस्वी यादव इस समीकरण को बनाए रखने के लिए पसमांदा मुस्लिमों तक को साधने में जुटे हैं। ओवैसी के साथ गठबंधन करने पर RJD और कांग्रेस पर बीजेपी मुस्लिम तुष्टिकरण का आरोप लगा कर भुनाने की कोशिश कर सकती है । 

ओवैसी की सीमांचल में तो मुस्लिम वोटर्स पर कुछ पकड़ है , लेकिन बिहार के अन्य हिस्सों में पार्टी का कोई जनाधार नहीं है । 

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ओवैसी को बिहार में राजनैतिक जमीन नहीं देना चाहते लालू-तेजस्वी

असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम को इंडी गठबंधन के साथ मिलकर चुनाव लड़ने में फायदा हो सकता था । तब शायद उन्हे अपने हिस्से के सीटों को जीतना अपेक्षाकृत आसान होता। परन्तु अब उन्हे सीमांचल में भी इंडी गठबंधन की चुनौती का सामना करना पड़ेगा । ऐसे में मुस्लिम वोटों का बंटना लगभग तय है। 

इसके अलावा गठबंधन में रहते हुए एआईएमआईएम के लिए अपनी राजनीति को बिहार में विस्तार देने का रास्ता भी खुल सकता था जो कि लालू यादव और तेजस्वी यादव नहीं चाहते हैं । ऐसा इसलिए क्योंकि बिहार में असदुद्दीन ओवैसी के पैर फैलाने का मतलब है राजद के मुस्लिम वोटों का बंटवारा । यानि राजद के वोट बैंक में सेंधमारी । बिहार की राजनीति में मुस्लिम-यादव समीकरण राजद की ताकत रहा है। इसके दरकने का मतलब है तेजस्वी की राजनीति के लिए नई चुनौती, जो वो कभी नहीं चाहेंगे। 

क्या होगा ओवैसी का अगला कदम?

इंडिया गठबंधन से रेड सिग्नल मिलने के बाद ओवैसी अब बिहार में छोटे-छोटे दलों के साथ मिलकर तीसरा मोर्चा बनाने की योजना बना रहे हैं । 2020 के विधानसभा चुनाव में AIMIM ने पांच सीटें जीतकर सभी को चौंकाया था, लेकिन इस बार सियासी माहौल अलग है। बिहार में मुस्लिम वोटरों पर RJD और कांग्रेस की पकड़ मजबूत है। ऐसे में ओवैसी का मुस्लिम वोटों पर दबदबा बनाना आसान नहीं दिखता है।

2020 में सीमांचल की कुछ सीटों पर जीत के बावजूद, ओवैसी की पार्टी को बिहार में व्यापक समर्थन नहीं मिला। मुस्लिम वोटरों का एक बड़ा वर्ग अब भी RJD और कांग्रेस को बीजेपी के खिलाफ मजबूत विकल्प मानता है। ऐसे में, ओवैसी की बेचैनी और तीसरे मोर्चे की कोशिश बिहार की सियासत में कितना बदलाव ला पाएगी, यह आने वाला समय बताएगा । लेकिन ओवैसी मुस्लिम वोटर्स से अब यह जरूर कह पाएंगे कि वो तो चाहते थे लेकिन उन्हे इंडी गठबंधन में शामिल नहीं किया।