प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार ने एक बड़ा राजनीतिक और सामाजिक फैसला लेते हुए देश में जातिगत जनगणना कराने का ऐलान किया है। यह आज़ाद भारत में पहली बार होगा जब जातियों की गणना आधिकारिक रूप से केंद्र सरकार कराएगी। इस निर्णय ने वर्षों से इस मुद्दे को उठाने वाली पार्टियों को नई चुनौती दे दी है।
जातिगत जनगणना का इतिहास: 94 साल का इंतजार
भारत में आखिरी बार जातिगत जनगणना 1931 में ब्रिटिश शासन के दौरान हुई थी। 2011 की जनगणना में भी जातियों की गिनती की गई थी, लेकिन उसके आंकड़े कभी सार्वजनिक नहीं किए गए। इस बार केंद्र सरकार ने स्पष्ट रूप से कहा है कि हर जाति की जनसंख्या का आंकड़ा इकट्ठा किया जाएगा और नीतियों में हिस्सेदारी उसी आधार पर तय की जाएगी।
कांग्रेस की प्रतिक्रिया: "देर आए, दुरुस्त आए"
कांग्रेस ने केंद्र सरकार के इस फैसले का स्वागत करते हुए कहा, "यह हमारे सामाजिक न्याय के एजेंडे की जीत है। यह प्रस्ताव कांग्रेस द्वारा 9 अप्रैल 2025 को अहमदाबाद में पारित किया गया था।"
राजस्थान कांग्रेस अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा ने इसे राहुल गांधी के ‘न्याय संकल्प’ की जीत बताया। उन्होंने कहा: "जातिगत जनगणना से न्याय मिलेगा और कांग्रेस 50% आरक्षण की सीमा को खत्म करेगी।"
तेजस्वी यादव का दावा: BJP हमारे एजेंडे पर
राष्ट्रीय जनता दल (RJD) नेता तेजस्वी यादव ने केंद्र सरकार को घेरते हुए कहा कि BJP ने पहले इस मांग का विरोध किया था, लेकिन अब उन्हीं के एजेंडे पर काम कर रही है। "सरकार को हमारी बात माननी पड़ी है, यह हमारी जीत है।"
चिराग पासवान का समर्थन: लेकिन आंकड़ों को न करें सार्वजनिक
लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) के अध्यक्ष चिराग पासवान ने भी इस कदम का समर्थन किया, लेकिन आगाह किया कि आंकड़ों को सार्वजनिक करने से जातिवाद को बढ़ावा मिल सकता है। "जाति एक कठोर सच्चाई है, लेकिन हमें उससे उबरने की दिशा में काम करना चाहिए।"
जातिगत जनगणना को लेकर देश की राजनीति में भूचाल आ गया है। जहां एक ओर विपक्ष इसे अपनी विचारधारा की जीत मान रहा है, वहीं भाजपा ने इस फैसले से विपक्ष के सबसे बड़े मुद्दे को हथिया लिया है।