प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस वक्त श्रीलंका के बेहद अहम दौरे पर हैं । उम्मीद की जा रही है कि उनका यह दौरा दोनों दोशों के आपसी संबंध को एक नई उंचाई पर ले जाएगा । पिछले दस सालों के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र का यह चौथा श्रीलंका दौरा है । इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि दोनों देश एक -दूसरे को कितनी अहमियत देते हैं ।
दोनों देशों के बीच आज रक्षा, उर्जा और व्यापार से जुड़े कई महत्वपूर्ण समझौते होने की उम्मीद है । परन्तु इसके साथ ही प्रधानमंत्री का यह दौरा सामरिक दृष्टिकोण से भी काफी महत्वपूर्ण माना जा रहा है ।
रक्षा, ऊर्जा,सुरक्षा समेत 10 समझौतों पर हस्ताक्षर की संभावना
प्रधानमंत्री मोदी की कोलंबो यात्रा के दौरा कुछ दस समझौतों पर सहमति के आसार हैं । इनमें रक्षा, ऊर्जा, व्यापार, सुरक्षा , संपर्क और डिजिटलीकरण के क्षेत्रों में आपसी सहयोग को बढ़ाने पर काफी जोर रहेगा ।
यदि दोनों देशों के बीच रक्षा के क्षेत्र में सहयोग को लेकर समझौता होता है , तो यह न सिर्फ दोनों देशों के आपसी संबंध के एक मुकाम पर ले जाएगा बल्कि इससे एक कड़वे अध्याय को पीछे छोड़ने में भी मदद मिलेगी । करीब 35 साल पहले भारत ने श्रीलंका से शांति सेना (आईपीकेएफ) को वापस बुला लिया था जिसके बाद आपसी संबंधों में काफी कटुता आ गई थी । इसकी छाया आज भी दिखाई पड़ती है ।
सामरिक रूप से भारत के लिए श्रीलंका की अहमियत
श्रीलंका भारत का सबसे करीबी द्वीपीय देश है । यह हिंद महासागर में स्थित है और इस लिहाज से इसका काफी सामरिक महत्व है । दरअसल चीन लगातार हिंद महासागर क्षेत्र में अपना प्रभाव बढ़ाने की कोशिश कर रहा है । उसकी नजर खास तौर से भारतीय सामरिक महत्व के क्षेत्रों पर टिकीं हैं ।
भौगोलिक रुप से श्रीलंका वो जगह है जहां से चीन अपनी मंशा को पूरा करने में कामयाब हो सकता है । चीन ने इसके लिए अपनी चिर-परिचित 'कर्ज की कूटनीति ' का सहारा लेकर श्रीलंकाई जमीन का इस्तेमाल करने की योजना बनाई जो आंशिक रुप से सफल भी रही । परन्तु जल्द श्रीलंका को बात समझ में आ गई और उसने भारत का रूख कर लिया ।
दरअसल आर्थिक संकट से जूझ रहे श्रीलंका को चीन ने अपने कर्ज के जाल में उलझा रखा है । श्रीलंका ने चीन की मदद से हंबनटोटा बंदरगाह का विकास कार्य शुरू किया । पहले चरण का कार्य पूरा होने तक करीब 1.7 बिलियन डॉलर की लागत आई । श्रीलंका को हर साल 100 मिलियन डॉलर के हिसाब से कर्ज का भुगतान करना था जो वह नहीं कर पाया । इसके बाद चीन ने हंबनटोटा बंदरगाह का 99 साल के लीज पर अधिग्रहण कर लिया ।
भारत और श्रीलंका के संबंधों में 2022 में तनाव आ गया था । इसकी वजह थी चीन का एक मिसाइल और सैटेलाइट ट्रैकिंग जहाज जिसने हंबनटोटा बंदरगाह पर लंगर डाला था । इसके बाद चीन का एक युद्धपोत भी कोलंबो बंदरगाह पर तैनात किया गया था । भारत में इसको लेकर काफी प्रतिक्रिया भी हुई थी ।
श्रीलंका में चीन करने जा रहा है बड़ा निवेश
हिंद महासागर क्षेत्र में श्रीलंका के सामरिक महत्व को देखते हुए चीन ने वहां 3.7 बिलियन डॉलर का निवेश करने की पेशकश की है । यदि ऐसा होता है तो श्रीलंका में यह अबतक का सबसे बड़ा निवेश होगा । हंबनटोटा में अत्याधुनिक तेल रिफाइनरी बनाने के लिए किया जाएगा ।
श्रीलंका में चीन की उपस्थिति जितनी अधिक होगी , भारत के लिए चुनौती भी उतनी ही बड़ी होगी । इसलिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का यह दौरा काफी अहमियत रखता है ।
पीएम मोदी का यह दौरा ऐसे समय में हो रहा है जब श्रीलंका आर्थिक संकट से उबरने की दिशा में आगे बढ़ रहा है । करीब तीन साल पहले भारत ने इस संकट से उबरने की दिशा में मदद का बड़ा हाथ बढ़ाया था । तब भारत ने आर्थिक संकट से जूझ रहाे श्रीलंका को 4.5 अरब अमेरिकी डॉलर की वित्तीय सहायता दी थी ।
वहां के वर्तमान राष्ट्रपति अनुरा कुमारा दिसानायके और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बीच आज आपसी हितों से जुड़े तमाम मुद्दों पर व्यापक चर्चा होगी । हालांकि दिसानायके वामपंथी नेता माने जाते हैं , लेकिन पिछले साल का पद संभालने के उन्होने सबसे पहले भारत की यात्रा की थी ।
कोलंबो पहुंचने पर प्रधानमंत्री का भव्य स्वागत
इससे पहले शुक्रवार को कोलंबो पहुंचने पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का भव्य स्वागत किया गया । एयरपोर्ट पर उनकी आगवानी के लिए श्रीलंका के कई मंत्री मौजूद थे । इनमें विदेश मंत्री विजिता हेराथ के अलावा स्वास्थ्य मंत्री नलिंदा जयतिसा, श्रम मंत्री अनिल जयंता, मत्स्य पालन मंत्री रामलिंगम चंद्रशेखर, महिला एवं बाल मामलों की मंत्री सरोजा सावित्री पॉलराज और विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्री क्रिशांथा अबेसेना शामिल थे ।
इतना ही नहीं बारिश के बावजूद कोलंबो के भंडारनायके अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे बाहर प्रधानमंत्री मोदी का एक झलक के लिए लोग इंतजार करते रहे ।
प्रधानमंत्री मोदी और दिसानायके कोलंबो में भारत की सहयाता से बनाई गई कई परियोजनाओं का उद्घाटन करेंगे ।