भारत की अदालतों में मुस्लिम वादियों को मुस्लिम जज से कोई राहत नहीं मिलती, महिला आरोपियों को महिला जज रियायत नहीं देती ये दावा एक शोध कंपनी ने किया है. ईटीएफ ज़्यूरिख़, इम्पीरियल कॉलेज लंदन, हॉर्वर्ड और डार्टमाउथ कॉलेज के रिसर्चर्स ने ये दावा किया है। उन्होंने इस रिसर्च को पूरा करने के लिए 7.7 करोड़ मुकदमों का एक डेटाबेस तैयार किया गया जिसके लिए उन्होंने 2010 स 2018 के बीच के क़रीब 50 लाख मुकदमों का अध्ययन किया.ये सभी केस भारत की निचली अदालतों के थे जिन्हें ई-कोर्ट्स प्लेटफॉर्म के ज़रिए रिसर्च के लिए निकाला गया. इस रिसर्च में पाया गया कि भारत की अदालतों में जाति, धर्म और लिंग के आधार पर कोई पक्षपात नहीं होता और न ही किसी ख़ास पहचान का जजों या न्याय पर कोई असर पड़ता है।
अमेरिका में पक्षपात के मामले सामने आए
इसी रिसर्च में ये भी सामने आया कि अमेरिकी अदालतों में अगर कोई अश्वेत आरोपी है तो उसे अश्वेत जज से फायदा हुआ, वहां पक्षपात किया गया, अश्वेत जज और अश्वेस आरोपी होने पर दोषसिद्धि की दर तक घटी है। वहीं इज़रायल में यहूदी और अरब जज अपने समुदाय का पक्ष लेते हैं , केन्या और चीन में भी जातीय और लिंग पक्षपात के सबूत मिले हैं वहीं भारत में पक्षपात होने की संभावना केवल 0.6% तक ही नज़र आई और उसका असर भी बहुत छोटा नज़र आया. इतना ही नहीं अगर जज और आरोपी अलग अलग जाति, लिंग या समुदाय से आते हैं तब भी भारत में पक्षपात दुनिया के बाकी देशों के मुकाबले बहुत कम है।
ऐसे की गई पूरी रिसर्च
इंस्टीट्यूट ने भारत के 7 हज़ार से ज्यादा लोवर कोर्ट के मुकदमों की लिस्ट तैयार की और उसका डेटा जुटाया.इसमें केवल आपराधिक मामलों को चुना गया. फिर मामलों में जजों की नियुक्ति का डेटा तैयार कर दोनों का मिलान किया गया.नामों के आधार पर जज और जाति, लिंग,धर्म के आधार पर वादियों का अनुमान लगाया गया.जाति की पहचान उपनामों से की गई. मामले किस जज को सौंपे जाएं ये प्रक्रिया भी निष्पक्ष और सहज थी. इन आंकड़ों के ज़रिए पूरी निष्पक्षता का डाटा तैयार किया।