वक्फ संशोधन बिल संसद से पास होते ही नीतीश कुमार को झटके पर झटके लग रहे हैं । कई नेताओं ने पार्टी छोड़ देने का ऐलान कर दिया है और एक मुस्लिम संस्था ने नीतीश से दूरी बना ली है । तो क्या बिहार में चुनाव से पहले बहुत बड़ा सियासी उलटफेर करने की तैयारी शुरू हो चुकी है ? क्या वक्फ संशोधन बिल सारे मुस्लिम वोट को एकजुट कर बिहार में पहले से बने बनाए समीकरणों को तोड़ देगा ?
मुस्लिम समुदायों की नुमाइंदगी कर रहे कुछ नेता और कुछ संस्थाएं माहौल तो ऐसा ही बना रही हैं । वो यह बताने की कोशिश कर रहे हैं कि मुसलमान सिर्फ बीजेपी से ही नहीं बल्कि एनडीए के सभी घटक दलों से नाराज हैं ।
चर्चा में 100 साल पुरानी मुस्लिन संस्था इमारत-ए-शरिया है जिसके बारे में कई लोगों का कहना है कि यह चुनाव में नीतीश कुमार का खेल बिगाड़ सकती है । लेकिन क्या इमारत-ए-शरिया का आम मुसलमानों पर इतना प्रभाव है कि वो उनके वोटों को जिधर चाहे ट्रांसफर कर सकती है ?
क्या है इमारत-ए-शरिया का इतिहास
इमारत-ए-शरिया एक मुस्लिम सामाजिक-धार्मिक संस्था है जिसकी स्थापना 26 जून 1921 को की गई थी । इसका प्रभाव बिहार, झारखंड, ओडिशा और बंगाल तक है । संस्था शादी के झगड़ों को निपटाने से लेकर शिक्षा देने तक का काम करती है । इमारत-ए-शरिया ने तीन तलाक के मुद्दे पर भी विरोध किया था और अब वक्फ संशोधन बिल का भी विरोध कर रही है ।
इमारत-ए-शरिया ने पहले वक्फ बिल का विरोध न करने पर नीतीश कुमार की इफ्तार पार्टी छोड़ी और अब उनसे और दूरी बनाती जा रही है । हालांकि इमारत-ए-शरिया सीधे तौर पर राजनीति में सक्रिय नहीं है परन्तु अप्रत्यक्ष रूप से बिहार की राजनीति पर असर डालती हैं । संस्था का कहना है कि वह मुसलमानों के अधिकारों की लड़ाई लड़ती है लेकिन कई बार राजनीतिक पार्टियों के साथ रिश्ते काफी चर्चा में रहते हैं । कई जानकारों का मानना है कि संस्था की राय का मुसलमानों पर सीधा असर पड़ता है, इसलिए राजनीतिक पार्टियां तालमेल बना कर रखने की कोशिश करती है ।
नीतीश को कितना नुकसान पहुंच सकता है ?
बिहार में मुसलमानों की आबादी करीब 17 प्रतिशत है । इनमें बड़ी संख्या पसमांदा मुसलमानों की है । BBC की एक रिपोर्ट के मुताबिक बिहार में मुस्लिम आबादी 2 करोड़ 31 लाख 49 हज़ार है । सुन्नी वक़्फ़ बोर्ड के मुताबिक राज्य में 2,900 सुन्नी वक़्फ़ स्टेट है और 5,000 एकड़ ज़मीन रजिस्टर्ड है ।
वहीं वक्फ बोर्ड के अनुमान के मुताबिक राज्य में 25,000 कब्रिस्तान हैं जिनमें से सिर्फ 1200 रजिस्टर्ड हैं । इसी तरह कुल 10,000 मस्जिदों में से 900 रजिस्टर्ड हैं । सुन्नी वक़्फ़ बोर्ड के पास 3,000 विवादित मामले हैं । शिया वक़्फ़ बोर्ड की बात करें तो उनके पास 327 स्टेट हैं और 174 विवादित मामले हैं ।
नया कानून लागू होने के बाद जैसा कि केंद्र सरकार कह रही है, गरीब ( पसमांदा ) मुसलमानों को भी इसका लाभ मिल सकेगा जो अभी नहीं मिल पा रहा है । यदि ऐसा होता है तो जेडीयू और एडीए के कई अन्य सहयोगियों को ज्यादा नुकसान की संभावना नहीं दिखती है । परन्तु नीतीश कुमार के लिए बड़ी चुनौती बिहार विधान सभा का चुनाव है जो करीब छह महीने बाद होने वाली है ।
अभी माना जा रहा है कि इमारत-ए-शरिया अगर खुलकर नीतीश का विरोध करती रही तो JDU को 10 से 15 सीटों का नुकसान हो सकता है । लेकिन डबल इंजन की सरकार और एनडीए की पार्टियां यदि गरीब मुसलमानों को नए कानून का फायदा समझाने में कामयाब रही तो उन्हे इसका फायदा मिल सकता है ।