बाउंसर से बने ईसाई धर्मगुरू, दुनिया पोप फ्रांसिस की क्यों मुरीद हो गई

Authored By: News Corridors Desk | 22 Apr 2025, 06:14 PM
news-banner
ईसाइयों के सबसे बड़े धर्मगुरू पोप फ़्रांसिस के निधन का शोक दुनिया भर में मनाया जा रहा है। वो एक ऐसी शख़्सियत रहे, जिन्होंने मानवता को हमेशा सबसे ऊपर रखा। ये एक अजीब इत्तफ़ाक़ है कि कुछ वक़्त से बीमार चल रहे पोप फ़्रांसिस ने मौत का वक़्त भी ऐसा चुना, जब दुनिया उम्मीदों से लबरेज़ थी। कहा जाता है गुड फ़्राइडे को ईसा मसीह को सूली पर चढ़ा दिया गया था। लेकिन ईस्टर संडे को वो जीवित लौट आए थे। पोप फ़्रांसिस ने गुड फ़्राइडे से ईस्टर संडे तक दुनिया के लिए दुआएँ की।  ईस्टर संडे को पोप फ़्रांसिस आख़िरी बार लोगों के सामने आए और महज़ एक दिन बाद 21 अप्रैल को प्रेम, मानवता और भाईचारे की उम्मीदें जगा आख़िरी साँसें लीं।

हम आज आपको पोप फ़्रांसिस की कहानी बताएंगे जिन्होंने अपने संघर्ष, दया और विनम्रता से पूरी दुनिया का दिल जीता। जब समलैंगिकता को लेकर दुनिया भर में बहस चल रही थी तब पोप फ़्रांसिस ने एक बड़े दिल वाला फ़ैसला लिया। उन्होंने कहा कि ऐसे लोगों को चर्च में एंट्री से रोकने वाले वे कौन होते हैं। ईसा मसीह की प्रार्थना में शरीक होने से किसी को रोकने का अधिकार किसी के पास नहीं है।

जी हाँ, हम बात कर रहे हैं रोमन कैथोलिक चर्च के 266वें पोप।पोप फ्रांसिस की जिनका 88 साल की उम्र में 21 अप्रैल 2025 को वेटिकन सिटी में निधन हो गया। एक साधारण परिवार में जन्मे जॉर्ज मारियो बेर्गोग्लियो से लेकर विश्व के सबसे प्रभावशाली धार्मिक नेता बनने तक उनका सफर प्रेरणा से भरा रहा। उनका जीवन बेहद सादगी भरा रहा है। कभी बॉक्सर और टीचर रहे पोप फ्रांसिस 21 साल की उम्र में जेसुइट समुदाय से जुड़े और फिर पादरी बनने के बाद नाम बदल लिया। पोप फ्रांसिस के जीवन के कुछ किस्से काफी मशहूर हैं

कहानी पोप फ्रांसिस की 

पोप फ्रांसिस का असली नाम जॉर्ज मारियो बर्गोग्लियो था। 17 दिसंबर 1936 को अर्जेंटीना की राजधानी ब्यूनस आयर्स में जन्म हुआ था। पोप फ्रांसिस के माता-पिता इटली से अप्रवासी के रूप में अर्जेंटीना आए। पादरी बनने से पहले वो ब्यूनस आयर्स के नाइट क्लब में बाउंसर थे। इसके अलावा उन्होंने एक केमिकल लैब में भी काम किया। साथ ही वो अर्जेंटीना के कॉलेज में साहित्य और साइकोलॉजी के टीचर भी रहे। पोप फ्रांसिस 21 साल की उम्र में जेसुइट समुदाय में शामिल हुए थे। 2001 में पोप जॉन पॉल द्वितीय ने उन्हें कार्डिनल नियुक्त किया। 2015 में उन्हें 266वें पोप की उपाधि दी गई।

बता दें की पोप के निधन पर भारत में 3 दिन के राष्ट्रीय शोक की घोषणा की गई। भारत में भी पोप फ़्रांसिस का काफ़ी सम्मान रहा। ये सम्मान उनकी बेबाक़ राय और लोगों की सेवा के लिए मिलता है। पादरी बनने के बाद, बेर्गोलियो ने बुएनोस आयर्स के सबसे अपराध-ग्रस्त इलाकों में काम किया। जहां उन्होंने मानव तस्करी और नशाखोरी जैसी समस्याओं को समाज से ख़त्म करने के लिए काम किया।

आख़िर क्यों पोप फ़्रांसिस का क़द बढ़ता गया 

पोप फ्रांसिस के बड़े फैसले 

-समलैंगिक व्यक्तियों के चर्च में एंट्री के नियम बदल डाले 
 
-पद संभालने के 4 महीने बाद ही समलैंगिकता के मुद्दे पर बड़ा बयान दिया

-समलैंगिक व्यक्ति ईश्वर की खोज कर रहा है, तो उसे जज करने की ज़रूरत क्यों 

-पोप फ्रांसिस ने 2023 में समलैंगिक जोड़ों को आशीर्वाद देने का फैसला किया

-पोप फ़्रांसिस ने पारंपरिक सोने की अंगूठी की बजाय चांदी की अंगूठी पहनी

-वो पैलेस छोड़ कर साधारण घर में रहे और… पब्लिक बस और मेट्रो में सफर किया.. 

-जेल में महिला कैदियों के पैर धोए और महिला अपराधियों की ज़िंदगी में सुधार पर काम किया 

-तमाम विवादों के बावजूद इराक की यात्रा करने वाले पहले पोप बने

 वो पहले ऐसे पोप हैं जिन्होंने फ्रांसिस नाम को अपनाया। ये नाम उन्होंने संत फ्रांसिस ऑफ असीसी के सम्मान में लिया। जो गरीबों की सेवा के लिए जाने गए थे। आमतौर पर पोप को वेटिकन सिटी में सेंट पीटर्स बेसिलिका के नीचे गुफाओं में दफनाया जाता है लेकिन पोप फ्रांसिस को रोम में टाइबर नदी के दूसरी तरफ मौजूद सांता मारिया मैगीगोर बेसिलिका में दफनाया जा रहा है। पोप फ्रांसिस का अंतिम संस्कार सदियों पुरानी परंपरा के अनुसार ही किया जा रहा है।