साल 1990 में बिहार की राजनीति में बड़ा बदलाव हुआ। उस साल हुए चुनाव में जनता दल सबसे बड़ी पार्टी बनी और लालू प्रसाद यादव को भाजपा के समर्थन से मुख्यमंत्री बना दिया गया। उस समय भाजपा ने भी कई सीटों पर चुनाव लड़ा था और झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) को 10 सीटें मिली थीं।
लालू यादव ने उसी साल भाजपा नेता आडवाणी की रथ यात्रा को समस्तीपुर में रोककर गिरफ्तार करवा दिया। इसके बाद भाजपा ने सरकार से समर्थन वापस ले लिया, लेकिन लालू यादव का जनाधार और मजबूत हो गया। साल 1995 के चुनाव में लालू की पार्टी ने फिर से जीत दर्ज की और वे दोबारा मुख्यमंत्री बने।
1997 में जब चारा घोटाला सामने आया, तो लालू को इस्तीफा देना पड़ा और उन्होंने अपनी पत्नी राबड़ी देवी को मुख्यमंत्री बना दिया। साल 2000 के चुनाव में किसी भी पार्टी को बहुमत नहीं मिला। इस दौरान झामुमो जैसी छोटी पार्टियों ने भी सरकार बनाने में अहम भूमिका निभाई।
फिर साल 2005 में एक नया दौर शुरू हुआ। नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू ने भाजपा के साथ मिलकर सरकार बनाई और लालू-राबड़ी के 15 साल पुराने शासन को खत्म किया। 2010 में भी नीतीश को दोबारा जीत मिली, लेकिन 2013 में उन्होंने भाजपा से रिश्ता तोड़ लिया।
2015 में नीतीश ने राजद और कांग्रेस के साथ मिलकर चुनाव लड़ा और फिर मुख्यमंत्री बने। लेकिन 2017 में उन्होंने राजद से गठबंधन तोड़कर फिर भाजपा से हाथ मिला लिया। साल 2020 के चुनाव में भाजपा और जेडीयू ने मिलकर सरकार बनाई, पर इस बार भाजपा जेडीयू से बड़ी पार्टी बनकर सामने आई।
तीन दशकों में बिहार की राजनीति में कई बार बदलाव हुआ। लालू यादव के मंडल आंदोलन से लेकर नीतीश कुमार के बार-बार बदलते गठबंधनों तक, जनता ने कई नेताओं को आज़माया है। अब 2025 का चुनाव फिर से नए समीकरणों के साथ आने वाला है।