बिहार चुनाव से पहले सर्वे: सच की पड़ताल या माहौल बनाने की साजिश?

Authored By: News Corridors Desk | 03 Oct 2025, 01:22 PM
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बिहार में चुनावी सरगर्मी तेज़ होने के बीच एक नया सर्वे सामने आया है जिसने राजनीतिक हलकों में चर्चा का विषय बना दिया है। लोक पोल के मेगा सर्वे में इस बार बीजेपी के नेतृत्व वाले एनडीए गठबंधन की स्थिति कमजोर दिख रही है, जबकि तेजस्वी यादव के नेतृत्व वाला महागठबंधन सत्ता में आने के करीब है। लेकिन क्या यह सर्वे सच को दर्शाता है या सिर्फ चुनावी माहौल बनाने की कोशिश है?

बिहार चुनाव में कौन कर रहा बाज़ी?

लोक पोल के अनुसार, इस बार एनडीए गठबंधन 105 से 114 सीटें जीत सकता है, जबकि महागठबंधन को 118 से 126 सीटें मिलने का अनुमान है। यानी महागठबंधन के सत्ता में आने की संभावना ज़्यादा बताई जा रही है। वहीं, अन्य दलों को 2 से 5 सीटें मिलने का अनुमान है।

इस सर्वे में आश्चर्य की बात यह भी है कि तेजप्रताप यादव, प्रशांत किशोर, मायावती, केजरीवाल और ओवैसी जैसे बड़े नाम केवल 2 से 5 सीटों तक सिमट कर रह जाएंगे। यह नतीजा कई लोगों को चौंका सकता है।

विरोधी सर्वे का विश्लेषण

इसी बीच, कुछ दिनों पहले हुए JVC पोल में बिहार में एनडीए को 131 से 150 सीटों तक पहुंचने का अनुमान दिया गया है। इसमें बीजेपी को 66-77 सीटें, जेडीयू को 52-58 और अन्य NDA सहयोगियों को 13-15 सीटें मिलने की संभावना जताई गई है।

दो अलग-अलग सर्वे, दोनों के अलग-अलग नतीजे—यह सवाल उठाता है कि क्या ये सर्वे निष्पक्ष हैं या राजनीतिक दलों की मंशा से प्रेरित हैं?

चुनावी सर्वे की वास्तविकता

सर्वेक्षण की प्रक्रिया में एजेंसियां जनता से प्रश्न पूछती हैं, जैसे कि कौन बेहतर मुख्यमंत्री हो सकता है, कौन से दल की जीत की संभावना ज्यादा है, या जनता किन वादों पर भरोसा कर रही है। लेकिन यह भी ध्यान रखना जरूरी है कि सर्वे कहां किया गया, किस इलाक़े में किया गया और कितने लोगों से पूछा गया, इससे परिणाम प्रभावित हो सकते हैं।

राजनीतिक दलों के अपने मजबूत गढ़ होते हैं। अगर सर्वे उन्हीं क्षेत्रों में किया जाता है, तो परिणाम पक्षपाती हो सकते हैं। इसीलिए कभी-कभी एक ही समय में किए गए दो सर्वे विपरीत परिणाम दिखा देते हैं।

क्या सर्वे चुनावी माहौल बनाते हैं?

चुनाव से पहले राजनीतिक दल और सर्वे एजेंसियां मिलकर या स्वतंत्र रूप से माहौल बनाने की कोशिश कर सकती हैं। जैसे नेताओं के बयान एक-दूसरे पर वार और पलटवार करते हैं, वैसे ही सर्वे भी राजनीतिक नाटकीयता का हिस्सा बन सकते हैं।

अंत में, जनता को चाहिए कि वे इन सर्वे परिणामों को पूरी गंभीरता से लें, परन्तु अपने अनुभव और समझ के आधार पर ही निर्णय करें।