भारत में लोकसभा और विधानसभा चुनावों को एक साथ कराने के लिए प्रस्तावित विधेयकों पर विचार करने के लिए गठित संसद की संयुक्त समिति का कार्यकाल बढ़ा दिया गया है। यह निर्णय मंगलवार (25 मार्च) को लिया गया, जब समिति को यह कार्य सौंपा गया कि वह इस साल के मानसून सत्र के अंतिम सप्ताह तक अपना प्रतिवेदन पेश करेगी।
समिति का कार्य और विधेयकों पर विचार
लोकसभा और विधानसभा चुनावों को एक साथ कराने के उद्देश्य से प्रस्तुत किए गए दो विधेयक- ‘संविधान (129वां संशोधन) विधेयक, 2024’ और ‘संघ राज्य क्षेत्र विधि (संशोधन) विधेयक, 2024’ पर विचार करने के लिए गठित 39 सदस्यीय संयुक्त समिति ने अब कार्यकाल बढ़ाने का प्रस्ताव रखा। समिति के अध्यक्ष और भाजपा सांसद पीपी चौधरी ने यह प्रस्ताव लोकसभा में रखा था, जिसे सदन ने ध्वनिमत से मंजूरी दी। इस समिति को इन विधेयकों पर गहन विचार और अंतिम सिफारिशें करने के लिए समय दिया गया है।
रिपोर्ट सौंपने की समय सीमा
इन विधेयकों को पिछले साल 17 दिसंबर को लोकसभा में पेश किया गया था। अब समिति को आगामी मानसून सत्र के पहले सप्ताह तक रिपोर्ट सौंपने का निर्देश दिया गया है। यह विधेयक एक ऐसे कदम को लागू करने की दिशा में हैं, जिसके तहत लोकसभा और विधानसभाओं के चुनावों को एक साथ कराया जा सके। इससे चुनावी प्रक्रिया में समय की बचत और संसाधनों का बेहतर इस्तेमाल होने की संभावना जताई जा रही है।
पूर्व राष्ट्रपति की अध्यक्षता में बनी समिति का समर्थन
इस प्रस्ताव का आधार पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में गठित उच्च स्तरीय समिति की रिपोर्ट है, जिसने ‘एक राष्ट्र-एक चुनाव’ की अवधारणा का समर्थन किया था। इस समिति की सिफारिशों को स्वीकार कर केंद्रीय मंत्रिमंडल ने दो विधेयक पेश किए, जिसमें से एक संविधान संशोधन विधेयक है और दूसरा संघ राज्य क्षेत्र विधि (संशोधन) विधेयक है।
चुनाव प्रक्रिया में बड़े बदलाव की संभावना
लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने इस संबंध में पीपी चौधरी की अध्यक्षता में 39 सदस्यीय संयुक्त संसदीय समिति गठित की थी, जो इन विधेयकों पर विचार कर रही है। अब समिति को तय समय सीमा के अंदर अपनी रिपोर्ट लोकसभा में प्रस्तुत करनी होगी। यदि ये विधेयक पारित होते हैं, तो यह चुनावी प्रक्रिया में बड़े बदलाव का संकेत देंगे।
‘एक राष्ट्र-एक चुनाव’ की अवधारणा भारतीय लोकतांत्रिक प्रक्रिया में एक बड़ा बदलाव ला सकती है। संसदीय समिति का कार्यकाल बढ़ाने से इस पर और गहन विचार किया जा सकेगा। यदि यह प्रणाली लागू होती है, तो इससे चुनावों में लगने वाले समय और संसाधनों की बचत होगी और देश में सुचारू शासन व्यवस्था सुनिश्चित की जा सकेगी।