एक क़ानून आया और माँग उठी क़ानून रद्द कर दो. अब सुप्रीम कोर्ट का फैसला आया रेयरेस्ट केस में ही क़ानून रद्द हो सकता है… क़ानून आपको पता ही है वक्फ संशोधन क़ानून और सुप्रीम कोर्ट का फैसला मैं आज समझाऊंगा लेकिन इस एक फैसले को अगर आप ध्यान से समझेंगे तो पाएंगे कि इसके ज़रिए संसद और सुप्रीम कोर्ट के बीच जो टकराव की कथित बातें चल रही थीं उन पर पूर्ण विराम लगेगा. कोर्ट पर पक्षपात करने वाले जो सवाल उठ रहे थे उन पर पूर्ण विराम लगेगा और साथ ही वक्फ को ग़लत क़ानून बताने वालों की ज़ुबान पर तो पूर्ण विराम लगेगा ही…तो कैसे एक तीर से दो नहीं तीन शिकार किए गए हैं इस लाइन को निगेटिव सेंस में न लें कहने का मतलब है कैसे एक फैसले से तीन अच्छे संदेश निकले हैं चलिए उनका विश्लेषण करते हैं…ऐसा फैसला जिससे सरकार भी ख़ुश दिख रही है, विरोध करने वाले भी और नपी तुली कोर्ट की टिप्पणियों से सरकार कोर्ट के रिश्ते भी तो सबसे पहले समझते हैं कोर्ट ने क्या फैसला सुनाया
रेयरेस्ट केस में ही क़ानून को रद्द किया जा सकता है
वक्फ बोर्ड में गैर-मुस्लिम मेंबर्स की संख्या 4 और राज्यों के वक्फ बोर्ड में 3 से ज्यादा न हो। सरकारें कोशिश करें कि बोर्ड में नियुक्त किए जाने वाले सरकारी मेंबर्स भी मुस्लिम कम्युनिटी से ही हों। सरकार ने संशोधन में केवल इतना कहा था कि ग़ैर मुस्लिम दो से ज्यादा होने अनिवार्य हैं यानि सरकार के फैसले को सही ठहराते हुए केवल जो संख्या निर्धारित नहीं थी उसे निर्धारित कर दिया गया है बल्कि बढ़ा ही दिया गया है..बोर्ड में 11 सदस्य होंगे उसमें से ग़ैर मुस्लिम बोर्ड के किसी फैसले को बदल नहीं पाएंगे जबतक उन्हें 2 या 3 मुस्लिम सदस्यों का सहयोग न मिले तो मुस्लिमों को भी ऐतराज नहीं
वक्फ बनाने की शर्त सरकार ने क़ानून में लिखी थी 5 साल से इस्लाम की प्रैक्टिस करने वाला ही कर सकता है कोर्ट ने इस पर रोक लगा दी है और कहा है कि जबतक सिस्टम तय न हो जाए तब तक इस पर रोक लगी रहेगी, सिस्टम सरकार को ही बनाना है यानि केवल छोटी सी रोक या संशोधन जिसे करने का अधिकार सरकार के पास ही रहेगा, विरोध करने वाले इसे अपनी बड़ी जीत बता रहे. इस संशोधन के पीछे तर्क ये था कि किसी हिंदू की ज़मीन पर वक्फ कब्जा न कर सके जैसी बहुत सारी घटनाएं सामने आ चुकी हैं जैसे- तमिलनाडु के तिरुचि जिले में स्थित इस हिंदू बहुल गांव (लगभग 330 एकड़ जमीन) पर वक्फ बोर्ड ने 2022 में पूरा दावा ठोक दिया
बिहार सुन्नी वक्फ बोर्ड ने अगस्त 2024 में पूरे गोविंदपुर गांव पर दावा किया। इससे कई परिवार प्रभावित हुए—कुछ ने घर खोए, तो कुछ की खेती की जमीन।
केरल के मुनंबम गांव पर वक्फ बोर्ड ने पूरा कब्जा कर लिया। ग्रामीण 170 दिनों से भूख हड़ताल तक की थी लेकिन कुछ हुआ नहीं क्योंकि कांग्रेस सरकार में वक्फ बोर्ड के पास असीमित शक्तियां हो गईं थी. अब इस पर अंतिम फैसला बहुत सारी बातों को तय करेगा
तीसरा फैसला जो सरकार के लिए झटका हो सकता है क्योंकि सरकार ने वक्फ प्रॉपर्टी का वैरिफिकेशन करने का अधिकार कलेक्टर को दे दिया था और जब तक जाँच होती विवादित संपत्ति वक्फ की न होती लेकिन कोर्ट ने कहा है कि वक्फ ट्रिब्यूनल या कोर्ट तय करेगा संपत्ति वक्फ की है या नहीं यानि अब जो वक्फ संपत्ति हैं उन्हें बिना कोर्ट के आदेश के खाली नहीं कराया जा सकेगा और नहीं गिराया जा सकेगा…तो इन तीन बड़े बदलावों के साथ सुप्रीम कोर्ट एक न्यायसंगत और संतुलित फैसला देकर सरकार और मुस्लिम पक्ष दोनों को एहसास करा दिया है कि न्याय निष्पक्ष और संविधानसंगत ही होगा…
अब थोड़ा सा समझने की कोशिश करते हैं कि कोर्ट ने फैसला देते समय तर्क क्या क्या दिए
जब तक राज्य सरकारें इस्लाम प्रैक्टिस तय करने के लिए कोई नियम नहीं बनाती तब तक कोई शख्स 5 साल से मुसलमान है या नहीं नहीं पता लगाया जा सकता,इसका मनमाने ढंग से इस्तेमाल किया जा सकता है
क़ानून रद्द करने का फैसला रेयरेस्ट और रेयर केस में ही हो सकता है, यहां ऐसी कोई ज़रूरत नहीं है इस संदेश का मतलब क़ानून बनाने का अधिकार संसद के पास ही है और वो ही सर्वोपरि है, बस सुप्रीम कोर्ट उस क़ानून की संवैधानिकता पर सवाल खड़े कर सकता है और उनमें परिवर्तन कर सकता है. शक्तियों के सामंजस्य की ये कमी पिछले कुछ सालों से सुप्रीम कोर्ट और संसद के बीते खत्म होती दिख रही थी, कोलैजियम सिस्टम को लेकर तो सरकार के कई मंत्रियों ने सार्वजनिक रूप से कई विवादित बयान दिए जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट से भी सरकार के नियमों पर कई तल्ख टिप्पणियां हुईं और मामला बढ़ता जा रहा था..जस्टिस वर्मा का केस भी उसी रास्ते पर जा रहा था लेकिन अब सुप्रीम कोर्ट का फैसला एक दम साफ़ संकेत कर रहा है कि किसका क्या काम है…
चलिए अब सरसरी निगाह से जान लेते हैं कि वक्फ क़ानून पर कब क्या क्या हुआ
3 अप्रैल- लोकसभा से पास
4 अप्रैल- राज्यसभा से पास
5 अप्रैल- राष्ट्रपति ने मंजूरी दी, AIMPLB समेत कई मुस्लिम नेता सुप्रीम कोर्ट पहुंचे
17 अप्रैल- सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई शुरु की
15 मई- CJI संजीव खन्ना के बाद बने CJI गवई ने 20 मई सुनवाई की तारीख़ रखी
22 मई- सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई कर फैसला सुरक्षित रखा
15 सितंबर- सुप्रीम कोर्ट ने कुछ नियमों पर रोक लगाई
अब ये भी समझ लीजिए वक्फ क़ानून है क्या
1950 में वक्फ संपत्तियों की देखरेख के लिए एक कानूनी बनाने और संस्था के ज़रिए इसें मैनेज करने की ज़रूरत महसूस हुई
1954 में वक्फ एक्ट आया और सेंट्रल वक्फ काउंसिल बनी
1955 में क़ानून में बदलाव हर राज्य में वक्फ बोर्ड बनाने की शुरुआत
अभी देश में क़रीब 32 वक्फ बोर्ड है , जो वक्फ संपत्तियों का रखरखाव करते हैं
बिहार समेत कई प्रदेशों में तो शिया और सुन्नी अलग अलग वक्फ बोर्ड हैं
1954 में सेंट्रल वक्फ काउंसिल गठित हुआ जिसमें अब यानि 2025 में केंद्र सरकार ने संशोधित किया है
सरकार ने जो महत्वपूर्ण संशोधन किए थे उनमें
2 महिला सदस्यों का होना अनिवार्य किया है जो पहले अनिवार्य नहीं था
2 ग़ैर मुस्लिम अनिवार्य किया जिसे सुप्रीम कोर्ट ने भी मान लिया है
शिया सुन्नी के अलावा पसमांदा मुसलमान भी सदस्य बनाए जाएंगे
बोहरा और आगाखानी के लिए अलग वक्फ बोर्ड बनाए जाएंगे
केंद्र सरकार सेंट्रल वक्फ काउंसिल में 3 सांसदों को रख लकेगी जरूरी नहीं कि वो मुसलमान ही हों
बिना काग़ज़ात कोई संपत्ति वक्फ नहीं मानी जाएगी
धारा 40 खत्म की जिसके तहत किसी संपत्ति को वक्फ अपनी संपत्ति घोषित कर सकता था
तो कई बड़े बदलाव के साथ सरकार ने संदेश दिया कि उसने जितने भी बदलाव किए वो पसमांदा समाज को अधिकार देने और वक्फ का मुस्लिमों की भलाई के लिए इस्तेमाल हो सके इसलिए दिया अब कोर्ट ने भी उस पर कोई ख़ास आपत्ति नहीं जताई है तो ऐसे में क्या नया वक्फ क़ानून पसमांदा यानि ग़रीब मुसलमानों के लिए सौग़ात लेकर आएगा या फिर कुछ चुनिंदा लोग वक्फ संपत्तियों का मजा उठाते रहेंगे…