सार्वजनिक नहीं होगी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की डिग्री, हाईकोर्ट ने CIC के आदेश को किया रद्द

Authored By: News Corridors Desk | 25 Aug 2025, 07:02 PM
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दिल्ली हाईकोर्ट ने सोमवार को केंद्रीय सूचना आयोग (CIC) के उस आदेश को रद्द कर दिया जिसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की स्नातक डिग्री से जुड़ी जानकारी सार्वजनिक करने को कहा गया था । न्यायमूर्ति सचिन दत्ता ने दिल्ली की याचिका पर यह फैसला सुनाया । यह फैसला कोर्ट द्वारा 27 फरवरी को सुनवाई पूरी कर आदेश सुरक्षित रखने के करीब छह महीने बाद आया ।

नीरज शर्मा नामक व्यक्ति की ओर से आरटीआई आवेदन के बाद 21 दिसंबर 2016 को केंद्रीय सूचना आयोग ने निर्देश दिया था कि दिल्ली विश्वविद्यालय 1978 में बीए पास करने वाले सभी छात्रों के रिकॉर्ड के निरीक्षण की अनुमति दे। उसी साल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी यह परीक्षा पास की थी। इस आदेश को दिल्ली विश्वविद्यालय ने 2017 में अदालत में चुनौती दी थी, और पहली सुनवाई में ही कोर्ट ने आदेश पर रोक लगा दी थी।

दिल्ली विश्वविद्यालय का तर्क 

दिल्ली विश्वविद्यालय की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने अदालत में दलील दी कि सीआईसी का आदेश रद्द किया जाना चाहिए क्योंकि यह निजता के अधिकार का उल्लंघन करता है। उन्होंने यह भी कहा कि विश्वविद्यालय को अदालत के सामने रिकॉर्ड दिखाने में कोई आपत्ति नहीं है, लेकिन इसे सार्वजनिक नहीं किया जा सकता। डीयू ने तर्क दिया कि छात्र जानकारी को वह एक "न्यासिक जिम्मेदारी" (fiduciary capacity) के तहत संभालता है, और जब तक कोई सार्वजनिक हित न हो, केवल जिज्ञासा के आधार पर आरटीआई कानून के तहत किसी की निजी जानकारी नहीं मांगी जा सकती।

दूसरी ओर, आरटीआई आवेदकों की ओर से पेश वकील ने सीआईसी के आदेश का बचाव करते हुए कहा कि प्रधानमंत्री जैसे सार्वजनिक पद पर बैठे व्यक्ति की शैक्षिक योग्यता को जानना जनहित में है। उन्होंने तर्क दिया कि आरटीआई अधिनियम के तहत यह जानकारी दी जा सकती है। आखिर में हाईकोर्ट ने दिल्ली विश्वविद्यालय की दलीलों को स्वीकार करते हुए केंद्रीय सूचना आयोग के आदेश को रद्द कर दिया । 

पीएम की डिग्री को लेकर कहां से शुरू हुआ विवाद

प्रधानमंत्री मोदी की डिग्री को लेकर लंबे समय से राजनीतिक बहस जारी है । आम आदमी पार्टी और अन्य विपक्षी दल उनकी शैक्षिक योग्यता पर लगातार सवाल उठाते रहे हैं । 2016 में आम आदमी पार्टी के नेता अरविंद केजरीवाल ने इस मुद्दे को जोर-शोर से उठाना शुरू किया था । अब जबकि हाईकोर्ट ने सीआईसी के आदेश को रद्द कर दिया है , तब सवाल उठने लगा है कि क्या पीएम मोदी को बदनाम, झूठा और ग़ैर ज़िम्मेदार साबित करने के लिए यह एक सोची समझी सियासी चाल थी ? 

2016 में  दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने सूचना के अधिकार (RTI)  के तहत दिल्ली विश्वविद्यालय और गुजरात विश्वविद्यालय से पीएम मोदी की बीए और एमए डिग्रियों की जानकारी मांगी । अप्रैल 2016 में, तत्कालीन केंद्रीय सूचना आयुक्त एम. श्रीधर आचार्युलु ने दिल्ली विश्वविद्यालय और गुजरात विश्वविद्यालय को निर्देश दिया कि वे पीएम मोदी की डिग्रियों से संबंधित जानकारी उपलब्ध कराएं । CIC ने 21 दिसंबर 2016 को 1978 में बीए प्रोग्राम पास करने वाले सभी छात्रों के रिकॉर्ड के निरीक्षण की अनुमति दी, जिसमें पीएम मोदी का नाम भी शामिल था

गुजरात और दिल्ली विश्वविद्यालय का जानकारी सार्वजनिक करने से इनकार

गुजरात विश्वविद्यालय ने स्पष्ट किया कि नरेंद्र मोदी ने डिस्टेंस एजुकेशन के माध्यम से राजनीति विज्ञान में एमए की डिग्री प्राप्त की थी । हालांकि, डिग्री की कॉपी सार्वजनिक करने की मांग को विश्वविद्यालय ने अस्वीकार कर दिया । दिल्ली विश्वविद्यालय ने भी डिग्री की जानकारी सार्वजनिक करने से इनकार किया, ये दावा करते हुए कि यह तीसरे पक्ष की जानकारी है और इसे RTI के तहत सार्वजनिक नहीं किया जा सकता ।

गुजरात विश्वविद्यालय ने CIC के आदेश को गुजरात हाई कोर्ट में चुनौती दी, यह तर्क देते हुए कि डिग्री की जानकारी निजी है और इसे सार्वजनिक करने की आवश्यकता नहीं है । दिल्ली विश्वविद्यालय ने भी 2017 में CIC के आदेश के खिलाफ दिल्ली हाई कोर्ट में याचिका दायर की, जिसमें कहा गया कि 1978 के बीए रिकॉर्ड को सार्वजनिक करना RTI अधिनियम के दायरे में नहीं आता।

केजरीवाल पर लगा जुर्माना 

31 मार्च 2023 को, गुजरात हाई कोर्ट ने अरविंद केजरीवाल पर 25,000 रुपये का जुर्माना लगाया, यह कहते हुए कि उनकी याचिका "तुच्छ और भ्रामक" थी। कोर्ट ने यह भी कहा कि पीएम मोदी की डिग्री पहले से ही विश्वविद्यालय की वेबसाइट और सोशल मीडिया पर उपलब्ध है, और RTI के माध्यम से इसकी मांग एक विवाद पैदा करने की कोशिश थी ।

केजरीवाल ने कोर्ट के फैसले पर सवाल उठाते हुए ट्वीट किया कि क्या देश को यह जानने का अधिकार नहीं है कि उनका प्रधानमंत्री कितना पढ़ा-लिखा है। उन्होंने यह भी कहा कि "अनपढ़ या कम पढ़ा-लिखा पीएम देश के लिए खतरनाक" हो सकता है ।  गुजरात हाईकोर्ट के बाद अब दिल्ली हाई कोर्ट ने भी CIC के उस आदेश को रद्द कर दिया है, जिसमें दिल्ली विश्वविद्यालय को पीएम मोदी की बीए डिग्री से संबंधित जानकारी सार्वजनिक करने का निर्देश दिया गया था। 

अब सवाल उठता है कि क्या पिछले 9 साल से यह खेल सियासी एजेंडे के तहत चलाया जा रहा था ? सवाल यह भी उठता है कि पीएम मोदी की डिग्री अगर ग़लत थी, तो उनके ख़िलाफ़ हलफनामे में ग़लत जानकारी देने का मामला क्यों नहीं दर्ज कराया गया ? सवाल बड़ा सामान्य सा है, लेकिन सियासत में सामान्य को असमान्य बना कर पेश कर देना कोई बड़ी बात नहीं है और ऐसा लगता है कि पीएम की डिग्री मामले में भी पिछले कई सालों से यही हो रहा था ।