मालेगांव ब्लास्ट:साध्वी प्रज्ञा औऱ कर्नल पुरोहित सहित सभी सात आरोपी बरी, नहीं मिले सबूत

Authored By: News Corridors Desk | 31 Jul 2025, 01:21 PM
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महाराष्ट्र के मालेगांव में साल 2008 में हुए बम धमाका मामले में एनआईए की विशेष अदालत ने गुरुवार को बड़ा फैसला सुनाया । करीब सत्रह साल तक चली सुनवाई के बाद अदालत ने सभी सात आरोपियों को बरी कर दिया । इन आरोपियों में पूर्व भाजपा सांसद साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर, लेफ्टिनेंट कर्नल प्रसाद पुरोहित, रिटायर्ड मेजर रमेश उपाध्याय, सुधाकर चतुर्वेदी, अजय राहिरकर, सुधाकर धर द्विवेदी और समीर कुलकर्णी शामिल थे ।

इन सभी को सबूतों के अभाव में बरी किया गया है । अपने फैसले में अदालत ने उन तमाम आरोपों को खारिज कर दिया जो 2008 में महाराष्ट्र एटीएस ने लगाए थे । इन सभी पर आतंकवाद और साजिश का आरोप लगाया गया था और मकोका (MCOCA) और यूएपीए जैसे सख्त कानूनों के तहत केस दर्ज किया गया ।

अदालत ने क्या कहा?

फैसला सुनाते हुए अदालत ने कहा कि आतंकवाद का कोई धर्म नहीं होता, क्योंकि कोई भी धर्म हिंसा को सही नहीं ठहराता । अदालत ने यह भी कहा कि जांच एजेंसियां यह साबित नहीं कर पाईं कि विस्फोट के लिए इस्तेमाल की गई जिस बाइक का जिक्र हुआ, वह वास्तव में साध्वी प्रज्ञा की थी। इसके अलावा फरीदाबाद, भोपाल आदि जगहों पर किसी साजिश की योजना बनने या बैठकें होने का कोई ठोस सबूत भी अदालत में पेश नहीं किया जा सका।

अदालत ने कहा कि अभियोजन पक्ष यह भी साबित नहीं कर पाया कि लेफ्टिनेंट कर्नल पुरोहित के घर में RDX रखा गया था या उन्होंने बम को असेंबल किया था। घटनास्थल से न कोई गोली के खोल मिले और न ही किसी का फिंगरप्रिंट या डीएनए सैंपल। इसके अलावा, उस मोटरसाइकिल का चेसिस नंबर मिटा दिया गया था और इंजन नंबर को लेकर भी संदेह बना रहा।

कोर्ट ने बताया कि आरोपियों के खिलाफ लगाए गए यूएपीए जैसे गंभीर आरोपों को साबित करने के लिए पर्याप्त सबूत पेश नहीं किए जा सके। साथ ही, यह भी पाया गया कि मेडिकल सर्टिफिकेट में गड़बड़ी की गई थी ।

क्या है मालेगांव धमाका मामला ?

29 सितंबर 2008 को महाराष्ट्र के नासिक जिले के मालेगांव में एक जबरदस्त धमाका हुआ था । रमजान के महीने में मुस्लिम बहुल इलाके में हुए इस धमाके में 6 लोगों की मौत हो गई थी और 101 लोग घायल हुए थे। महाराष्ट्र एटीएस ने दावा किया कि यह धमाका एक मोटरसाइकिल में लगे IED से किया गया था।

महाराष्ट्र एटीएस ने अपनी जांच के बाद साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर को 23 अक्टूबर 2008 को गिरफ्तार किया । जांच एजेंसी का कहना था कि धमाके में इस्तेमाल की गई मोटरसाइकिल उन्हीं के नाम रजिस्टर्ड थी। इसके अलावा लेफ्टिनेंट कर्नल प्रसाद पुरोहित, समीर कुलकर्णी, रमेश उपाध्याय समेत कुल 11 लोगों को आरोपी बनाया गया। इन पर मकोका (MCOCA) और यूएपीए जैसे सख्त कानूनों के तहत केस दर्ज किया गया।

इस केस में पहली बार किसी कथित हिंदू संगठन का नाम सामने आया और "भगवा आतंकवाद" जैसे शब्द राजनीतिक बहसों में आने लगे । उस वक्त केंद्र में कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार थी।

2011 में एनआईए को सौंपी गई जांच 

2011 में महाराष्ट्र सरकार की सिफारिश पर इस केस की जांच एनआईए को सौंप दी गई। एनआईए ने दोबारा जांच शुरू की और पाया कि कई सबूतों में खामियां हैं। 2016 में एनआईए ने सप्लिमेंट्री चार्जशीट दाखिल की और मकोका की धाराएं हटा दीं। एजेंसी ने कहा कि मकोका जल्दबाज़ी में लगाया गया था और सबूतों की जांच में कई कमियां मिली हैं।

पूरे मुकदमे के दौरान अभियोजन पक्ष ने कुल 323 गवाह पेश किए, जिनमें से 34 ने अपने पहले दिए गए बयान बदल दिए। 2016 में एनआईए ने अदालत में कहा था कि प्रज्ञा सिंह ठाकुर और अन्य आरोपियों के खिलाफ सबूत काफी नहीं हैं, और उन्हें आरोपमुक्त करने की सिफारिश की थी । अब करीब 17 साल बाद अदालत ने इस मामले में अंतिम फैसला देते हुए सभी आरोपियों को बरी कर दिया।