क्या राहुल गांधी अपने पिता राजीव गांधी और दादी इंदिरा गांधी की गलती का प्रायश्चित करना चाहते हैं. ऐसा माना जाता है कि मंडल कमीशन की रिपोर्ट पर कांग्रेस पार्टी के रूख से ओबीसी समाज काफी नाराज रहा है। उनकी वो नाराजगी अब तक खत्म नहीं हुई । मंडल कमीशन ने 1980 में अपनी रिपोर्ट दे दी थी । लेकिन अगले दस साल तक इंदिरा गांधी और राजीव गांधी की सरकार ने उसे लागू नहीं किया।
बाद में विश्वनाथ प्रताप सिंह की सरकार ने 1990 में मंडल कमीशन की सिफारिशों को लागू करने का फैसला किया तब राजीव गांधी ने अल्पसंख्यक कार्ड के जरिए उसका विरोध किया था । राजीव गांधी ने तब कहा था कि सरकार ने मंडल कमीशन की रिपोर्ट को लागू कर अल्पसंख्यकों को लाभ से वंचित कर दिया है ।
राहुल गांधी को क्यों याद आए OBC
कांग्रेस का अल्पसंख्यक तुष्टिकरण आज भी जारी है । कुछ राज्यों में चुनावी समीकरणों के जरिए पार्टी ओबीसी का वोट पाने में कामयाब भी रहती है , परन्तु पिछड़े समाज का भरोसा जीतने में उसे कामयाबी नहीं मिली है । कांग्रेस शासित कुछ राज्यों में जिस तरह से ओबीसी का आरक्षण कम कर मुस्लिमों को देने के आरोप लगे हैं उससे पिछड़े तबके का भरोसा कांग्रेस पर से और कम कम होता दिखा है ।
जब से कांग्रेस पार्टी को 2024 लोकसभा चुनाव में 99 सीटों पर जीत मिली हैं, पार्टी नेता राहुल गांधी ओबीसी का राग अलापे जा रहे हैं। अहमदाबाद में चल रहे पार्टी अधिवेशन में भी उनका यह अलाप जारी रहा। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक कांग्रेस वर्किंग कमेटी की बैठक में राहुल गांधी ने कहा कि कांग्रेस दलित, मुस्लिम और ब्राह्मण को साधने में उलझी रही और ओबीसी हमसे दूर चली गई।
इसके साथ ही राहुल गांधी ने कहा कि, हम अल्पसंख्यक की बात करते हैं, इसलिए कई बार हमारी आलोचना भी होती है। इससे डरना नहीं है, मुद्दे उठाए जाने चाहिए। राहुल गांधी ने कहा कि जब हम अल्पसंख्यकों, खासकर मुस्लिम समुदाय की बात करते हैं, तो उसकी आलोचना होती है । लेकिन इससे डरने की ज़रूरत नहीं है।
कांग्रेस पार्टी शुरू से ही मुसलमानों की वकालत करती रही है और चुनाव में उसे इसका फायदा भी मिलता रहा है। हालांकि पॉलिटिकल एक्सपर्ट्स की माने तो क्षेत्रीय स्तर पर रणनीति के हिसाब से मुस्लिम वोटर्स अन्य पार्टियों के साथ भी जुड़े, परन्तु राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस अब भी उनकी पहली पसंद बनी हुई है। इसलिए राहुल गांधी और कांग्रेस के थिंक टैंक की नजर ओबीसी वोट पर आकर टिक गई हैं ।
OBC को जोड़ना तो है, पर ये तो बताइए कैसे ?
राहुल गांधी का मानना है कि देश में 50 प्रतिशत से अधिक ओबीसी हैं। यदि इनके बीच पार्टी पैठ बनाने में कामयाब रही तो पहले से मौजूद दलित और मुस्लिम समर्थन के साथ वो सीधे-सीधे भाजपा को टक्कर देने की स्थिति में आ जाएगी । तब उसे क्षेत्रीय दलों पर ज्यादा निर्भर नहीं रहना पड़ेगा और विपक्षी खेमे में राहुल गांधी के नेतृत्व को चुनौती देना भी आसान नहीं होगा । परन्तु बड़ा सवाल यही है कि आखिर यह होगा कैसे ? इसके लिए अब तक कोई रोड मैप सामने नहीं आया है ।
राहुल का OBC प्लान और कांग्रेस की चुनौतियां
कांग्रेस ओबीसी को अपने साथ जोड़ना तो चाहती है लेकिन इसमें कई बड़ी चुनौतियां हैं जिनसे पार पाना आसान नहीं है । सबसे बड़ी चुनौती कांग्रेस के सहयोगी क्षेत्रीय दल हैं जिनकी राजनीति भी मुख्य रूप से ओबीसी और मुसलमानों के भरोसे चलती है। लालू यादव का राष्ट्रीय जनता दल, अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी और तमिलनाडु में स्टालिन की द्रविड़ मुनेत्र कषगम यानि डीएमके ऐसी ही पार्टी हैं । महत्वपूर्ण बात यह है कि इन पार्टियों के नेता खुद भी ओबीसी बैकग्राउंड से आते हैं। इसलिए उनके वोटर्स के बीच घुसपैठ करना कांग्रेस के लिए मुश्किल ही नहीं बल्कि आत्मघाती भी साबित हो सकता है ।
इसके अलावा एक और तथ्य यह है कि वर्तमान में ओबीसी राजनीति में कई अहम बदलाव हुए हैं । अब ऐसे नाम न के बराबर ही बचे हैं जिसे सभी पिछड़ी जातियां अपना नेता मानने को तैयार हों । आज हर जाति का अलग नेता है जिसे सत्ता में भागीदारी भी चाहिए । ऐसे में वोटों का समीकरण काफी उलझ गया है जिसे विपक्ष में रहते हुए सुलझाना आसान काम नहीं है ।
कांग्रेस के पास जनाधार वाले ओबीसी नेता की कमी
ऐसा नहीं है कि कांग्रेस के पास ओबीसी चेहरे नहीं हैं । इनमें से कम ही सही, जनाधार वाले नेता भी हैं । इनमें अशोक गहलोत, सचिन पायलट, भूपेश बघेल और जीतू पटवारी जैसे नाम शामिल हैं । अशोक गहलोत कई बार राजस्थान के मुख्यमंत्री रह चुके हैं और जनता के बीच उनकी छवि भी काफी अच्छी है । परन्तु सचिन पायलट के साथ उनका टकराव रास्ते का बड़ा रोड़ा है । इसी तरह भूपेश बघेल भी छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री रह चुके हैं । हालांकि इन दिनों घोटालों के आरोपों से घिरे हैं । अन्य नेताओं का ओबीसी समाज पर ज्यादा प्रभाव नहीं है ।
कांग्रेस में ओबीसी के कई युवा नेता भी जुड़े जिनकी राष्ट्रीय स्तर पर भी काफी चर्चा हुई लेकिन राहुल गांधी और उनकी टीम इन्हें लंबे वक़्त तक संभाल नहीं पाए। गुजरात के हार्दिक पटेल और अल्पेश ठाकोर ऐसे ही नेता हैं । इन्होने राहुल गांधी के पार्टी चलाने के तौर-तरीकों से निराश होकर पार्टी छोड़ दी। पिछले पंद्रह सालों के दौरान राहुल गांधी ने खुद भी ऐसा कुछ नहीं किया जिससे ओबीसी समाज में सकारात्मक संदेश जाए।
किसके साथ है ओबीसी समाज
आज ओबीसी समाज किसी एक पार्टी के साथ लामबंद नहीं है । इसकी बड़ी वजह यह है कि कई राज्यों में जिन क्षेत्रीय पार्टियों का मजबूत जनाधार है उसका नेतृत्व भी पिछड़ी जाति से ही आता है । दूसरी बात यह है कि ज्यादातर जातियों का अपना नेतृत्व वर्ग नहीं है जो सीधे-सीधे सत्ता में भागीदारी चाहता है । जाहिर है ऐसे में वह हवा का रूख भांपकर ही किसी बड़े दल को समर्थन देता है ।
इस दिशा में किसी भी पार्टी के लिए सबसे बड़ी चुनौती बीजेपी है जिसके पास सबसे ज्यादा ओबीसी वोटर्स हैं । इसकी सबसे बड़ी वजह तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हैं जो खुद ही ओबीसी से आते हैं । इसके अलावा कांग्रेस या किसी भी क्षेत्रीय पार्टी के मुकाबले बीजेपी में पिछड़े समाज को ज्यादा प्रतिनिधित्व मिलता है । जाहिर है ऐसे में राहुल गांधी और कांग्रेस के लिए ओबीसी वोटर्स का समर्थन हासिल करना आसान नहीं है ।
शैलेन्द्र कुमार
( 25 वर्षों से अधिक समय से मीडिया में सक्रिय । कई बड़े मीडिया संस्थानों में काम कर चुके हैं । )