झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री और राज्य के मौजूदा मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के पिता शिबू सोरेन का सोमवार को निधन हो गया । लंबी बीमारी के बाद 81 वर्ष की उम्र में उन्होंने दिल्ली के सर गंगाराम अस्पताल में सुबह 8:56 बजे अंतिम सांस ली ।
अस्पताल की ओर से जारी बयान में बताया गया कि शिबू सोरेन को 19 जून को किडनी से जुड़ी गंभीर समस्या के चलते नेफ्रोलॉजी विभाग में भर्ती किया गया था। उनके इलाज और निगरानी में डॉक्टर्स की टीम लगातार जुटी थी, परन्तु तमाम कोशिशों के बावजूद उन्हें बचाया नहीं जा सका । शिबू सोरेन को कुछ सप्ताह पहले स्ट्रोक भी आया था और वे करीब एक महीने से लाइफ सपोर्ट सिस्टम पर थे ।
निधन पर हेमंत सोरेन का भावुक ट्वीट
शिबू सोरेन के निधन की खबर से झारखंड में शोक की लहर दौड़ गई है । मुख्यमंत्री और उनके पुत्र हेमंत सोरेन ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर पिता के मौत की खबर देते हुए एक भावुक पोस्ट लिखा । हेमंत सोरेन ने लिखा कि, “आदरणीय दिशोम गुरुजी हम सभी को छोड़कर चले गए हैं। आज मैं शून्य हो गया हूं।”
राजनीतिक और सामाजिक क्षेत्र में बड़ा योगदान
शिबू सोरेन को झारखंड में जनजातीय अधिकारों की मुखर आवाज और सामाजिक आंदोलनों के अग्रणी नेता के रूप में याद किया जाता है । उन्हें 'दिशोम गुरु' और 'गुरुजी' के नाम से आदिवासी समाज में विशेष सम्मान प्राप्त था ।
शिबू सोरेन ने 70 के दशक में आदिवासियों के अधिकारों के लिए कई आंदोलन किए । वे बिहार से अलग झारखंड राज्य के गठन के आंदोलन में एक निर्णायक चेहरा रहे । 1980 से लेकर 2004 तक उन्होंने कई बार लोकसभा चुनाव जीते । 2004 में वे केंद्र सरकार में कोयला मंत्री भी बने थे।
तीन बार बने मुख्यमंत्री, कभी नहीं पूरा कर सके कार्यकाल
शिबू सोरेन साल 2005, 2008 और 2009 में झारखंड के मुख्यमंत्री बने । परन्तु हर बार किसी न किसी कारण से वो अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर सके । फिर भी, राज्य की राजनीति में उनका प्रभाव कभी कम नहीं हुआ ।
शिबू सोरेन की राजनीतिक यात्रा की शुरुआत पिता शोभराम सोरेन की हत्या के बाद हुई थी । उन्होंने पहली बार 1977 में लोकसभा चुनाव लड़ा था लेकिन हार गए थे। 1980 में उन्होंने पहली बार जीत दर्ज की और उसके बाद कई बार संसद में पहुंचे।
शिबू सोरेन करीब चार दशक तक जेएमएम ही नहीं बल्कि झारखंड की राजनीति का सबसे प्रमुख चेहरा रहे । आगे भी राज्य की राजनीति में उनका विशेष स्थान रहेगा। उनके निधन से झारखंड की राजनीति और आदिवासी आंदोलन को एक बड़ी क्षति पहुंची है।